पहाड़ी वाज़, भाग २

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती ५:१७-३२

[१७] यह न समझो कि मैं मूसवी शरीअत और नबियों की बातों को मनसूख़ करने आया हूँ। मनसूख़ करने नहीं बल्कि उनकी तकमील करने आया हूँ। [१८] मैं तुमको सच बताता हूँ, जब तक आसमानो-ज़मीन क़ायम रहेंगे तब तक शरीअत भी क़ायम रहेगी—न उसका कोई हरफ़, न उसका कोई ज़ेर या ज़बर मनसूख़ होगा जब तक सब कुछ पूरा न हो जाए। [१९] जो इन सबसे छोटे अहकाम में से एक को भी मनसूख़ करे और लोगों को ऐसा करना सिखाए उसे आसमान की बादशाही में सबसे छोटा क़रार दिया जाएगा। इसके मुक़ाबले में जो इन अहकाम पर अमल करके इन्हें सिखाता है उसे आसमान की बादशाही में बड़ा क़रार दिया जाएगा। [२०] क्योंकि मैं तुमको बताता हूँ कि अगर तुम्हारी रास्तबाज़ी शरीअत के उलमा और फ़रीसियों की रास्तबाज़ी से ज़्यादा नहीं तो तुम आसमान की बादशाही में दाख़िल होने के लायक़ नहीं। [२१] तुमने सुना है कि बापदादा को फ़रमाया गया, ‘क़त्ल न करना। और जो क़त्ल करे उसे अदालत में जवाब देना होगा।’ [२२] लेकिन मैं तुमको बताता हूँ कि जो भी अपने भाई पर ग़ुस्सा करे उसे अदालत में जवाब देना होगा। इसी तरह जो अपने भाई को ‘अहमक़’ कहे उसे यहूदी अदालते-आलिया में जवाब देना होगा। और जो उसको ‘बेवुक़ूफ़!’ कहे वह जहन्नुम की आग में फेंके जाने के लायक़ ठहरेगा। [२३] लिहाज़ा अगर तुझे बैतुल-मुक़द्दस में क़ुरबानी पेश करते वक़्त याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कोई शिकायत है [२४] तो अपनी क़ुरबानी को वहीं क़ुरबानगाह के सामने ही छोड़कर अपने भाई के पास चला जा। पहले उससे सुलह कर और फिर वापस आकर अल्लाह को अपनी क़ुरबानी पेश कर। [२५] फ़र्ज़ करो कि किसी ने तुझ पर मुक़दमा चलाया है। अगर ऐसा हो तो कचहरी में दाख़िल होने से पहले पहले जल्दी से झगड़ा ख़त्म कर। ऐसा न हो कि वह तुझे जज के हवाले करे, जज तुझे पुलिस अफ़सर के हवाले करे और नतीजे में तुझको जेल में डाला जाए। [२६] मैं तुझे सच बताता हूँ, वहाँ से तू उस वक़्त तक नहीं निकल पाएगा जब तक जुर्माने की पूरी पूरी रक़म अदा न कर दे। [२७] तुमने यह हुक्म सुन लिया है कि ‘ज़िना न करना।’ [२८] लेकिन मैं तुम्हें बताता हूँ, जो किसी औरत को बुरी ख़ाहिश से देखता है वह अपने दिल में उसके साथ ज़िना कर चुका है। [२९] अगर तेरी दाईं आँख तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे निकालकर फेंक दे। इससे पहले कि तेरे पूरे जिस्म को जहन्नुम में डाला जाए बेहतर यह है कि तेरा एक ही अज़ु जाता रहे। [३०] और अगर तेरा दहना हाथ तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे काटकर फेंक दे। इससे पहले कि तेरा पूरा जिस्म जहन्नुम में जाए बेहतर यह है कि तेरा एक ही अज़ु जाता रहे। [३१] यह भी फ़रमाया गया है, ‘जो भी अपनी बीवी को तलाक़ दे वह उसे तलाक़नामा लिख दे।’ [३२] लेकिन मैं तुमको बताता हूँ कि अगर किसी की बीवी ने ज़िना न किया हो तो भी शौहर उसे तलाक़ दे तो वह उससे ज़िना कराता है। और जो तलाक़शुदा औरत से शादी करे वह ज़िना करता है।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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