[१५] झूटे नबियों से ख़बरदार रहो! गो वह भेड़ों का भेस बदलकर तुम्हारे पास आते हैं, लेकिन अंदर से वह ग़ारतगर भेड़िये होते हैं। [१६] उनका फल देखकर तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या ख़ारदार झाड़ियों से अंगूर तोड़े जाते हैं या ऊँटकटारों से अंजीर? हरगिज़ नहीं। [१७] इसी तरह अच्छा दरख़्त अच्छा फल लाता है और ख़राब दरख़्त ख़राब फल। [१८] न अच्छा दरख़्त ख़राब फल ला सकता है, न ख़राब दरख़्त अच्छा फल। [१९] जो भी दरख़्त अच्छा फल नहीं लाता उसे काटकर आग में झोंका जाता है। [२०] यों तुम उनका फल देखकर उन्हें पहचान लोगे।
[२१] हर एक जो मुझे ‘ख़ुदावंद, ख़ुदावंद’ कहकर पुकारता है आसमान की बादशाही में दाख़िल न होगा। सिर्फ़ वही दाख़िल होगा जो मेरे आसमानी बाप की मरज़ी पर अमल करता है। [२२] अदालत के दिन बहुत-से लोग मुझसे कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावंद, ख़ुदावंद! क्या हमने तेरे ही नाम में नबुव्वत नहीं की, तेरे ही नाम से बदरूहें नहीं निकालीं, तेरे ही नाम से मोजिज़े नहीं किए?’ [२३] उस वक़्त मैं उनसे साफ़ साफ़ कह दूँगा, ‘मेरी कभी तुमसे जान पहचान न थी। ऐ बदकारो! मेरे सामने से चले जाओ।’
[२४] लिहाज़ा जो भी मेरी यह बातें सुनकर उन पर अमल करता है वह उस समझदार आदमी की मानिंद है जिसने अपने मकान की बुनियाद चटान पर रखी। [२५] बारिश होने लगी, सैलाब आया और आँधी मकान को झँझोड़ने लगी। लेकिन वह न गिरा, क्योंकि उस की बुनियाद चटान पर रखी गई थी।
[२६] लेकिन जो भी मेरी यह बातें सुनकर उन पर अमल नहीं करता वह उस अहमक़ की मानिंद है जिसने अपना मकान सहीह बुनियाद डाले बग़ैर रेत पर तामीर किया। [२७] जब बारिश होने लगी, सैलाब आया और आँधी मकान को झँझोड़ने लगी तो यह मकान धड़ाम से गिर गया।”
[२८] जब ईसा ने यह बातें ख़त्म कर लीं तो लोग उस की तालीम सुनकर हक्का-बक्का रह गए, [२९] क्योंकि वह उनके उलमा की तरह नहीं बल्कि इख़्तियार के साथ सिखाता था।
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