[१] ईसा पहाड़ से उतरा तो बड़ी भीड़ उसके पीछे चलने लगी। [२] फिर एक आदमी उसके पास आया जो कोढ़ का मरीज़ था। मुँह के बल गिरकर उसने कहा, “ख़ुदावंद, अगर आप चाहें तो मुझे पाक-साफ़ कर सकते हैं।”
[३] ईसा ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, पाक-साफ़ हो जा।” इस पर वह फ़ौरन उस बीमारी से पाक-साफ़ हो गया। [४] ईसा ने उससे कहा, “ख़बरदार! यह बात किसी को न बताना बल्कि बैतुल-मुक़द्दस में इमाम के पास जा ताकि वह तेरा मुआयना करे। अपने साथ वह क़ुरबानी ले जा जिसका तक़ाज़ा मूसा की शरीअत उनसे करती है जिन्हें कोढ़ से शफ़ा मिली है। यों अलानिया तसदीक़ हो जाएगी कि तू वाक़ई पाक-साफ़ हो गया है।”
[५] जब ईसा कफ़र्नहूम में दाख़िल हुआ तो सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर एक अफ़सर उसके पास आकर उस की मिन्नत करने लगा, [६] “ख़ुदावंद, मेरा ग़ुलाम मफ़लूज हालत में घर में पड़ा है, और उसे शदीद दर्द हो रहा है।”
[७] ईसा ने उससे कहा, “मैं आकर उसे शफ़ा दूँगा।”
[८] अफ़सर ने जवाब दिया, “नहीं ख़ुदावंद, मैं इस लायक़ नहीं कि आप मेरे घर जाएँ। बस यहीं से हुक्म करें तो मेरा ग़ुलाम शफ़ा पा जाएगा। [९] क्योंकि मुझे ख़ुद आला अफ़सरों के हुक्म पर चलना पड़ता है और मेरे मातहत भी फ़ौजी हैं। एक को कहता हूँ, ‘जा!’ तो वह जाता है और दूसरे को ‘आ!’ तो वह आता है। इसी तरह मैं अपने नौकर को हुक्म देता हूँ, ‘यह कर’ तो वह करता है।”
[१०] यह सुनकर ईसा निहायत हैरान हुआ। उसने मुड़कर अपने पीछे आनेवालों से कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ, मैंने इसराईल में भी इस क़िस्म का ईमान नहीं पाया। [११] मैं तुम्हें बताता हूँ, बहुत-से लोग मशरिक़ और मग़रिब से आकर इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब के साथ आसमान की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे। [१२] लेकिन बादशाही के असल वारिसों को निकालकर अंधेरे में डाल दिया जाएगा, उस जगह जहाँ लोग रोते और दाँत पीसते रहेंगे।” [१३] फिर ईसा अफ़सर से मुख़ातिब हुआ, “जा, तेरे साथ वैसा ही हो जैसा तेरा ईमान है।”
और अफ़सर के ग़ुलाम को उसी घड़ी शफ़ा मिल गई।
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