[१३] यह ख़बर सुनकर ईसा लोगों से अलग होकर कश्ती पर सवार हुआ और किसी वीरान जगह चला गया। लेकिन हुजूम को उस की ख़बर मिली। लोग पैदल चलकर शहरों से निकल आए और उसके पीछे लग गए। [१४] जब ईसा ने कश्ती पर से उतरकर बड़े हुजूम को देखा तो उसे लोगों पर बड़ा तरस आया। वहीं उसने उनके मरीज़ों को शफ़ा दी।
[१५] जब दिन ढलने लगा तो उसके शागिर्द उसके पास आए और कहा, “यह जगह वीरान है और दिन ढलने लगा है। इनको रुख़सत कर दें ताकि यह इर्दगिर्द के देहातों में जाकर खाने के लिए कुछ ख़रीद लें।”
[१६] ईसा ने जवाब दिया, “इन्हें जाने की ज़रूरत नहीं, तुम ख़ुद इन्हें खाने को दो।”
[१७] उन्होंने जवाब दिया, “हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं।”
[१८] उसने कहा, “उन्हें यहाँ मेरे पास ले आओ,” [१९] और लोगों को घास पर बैठने का हुक्म दिया। ईसा ने उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लेकर आसमान की तरफ़ देखा और शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उसने रोटियों को तोड़ तोड़कर शागिर्दों को दिया, और शागिर्दों ने यह रोटियाँ लोगों में तक़सीम कर दीं। [२०] सबने जी भरकर खाया। जब शागिर्दों ने बचे हुए टुकड़े जमा किए तो बारह टोकरे भर गए। [२१] ख़वातीन और बच्चों के अलावा खानेवाले तक़रीबन ५,००० मर्द थे।
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