अंदरूनी पाकीज़गी की तुलना में रिवायत

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती १५:१-२०

[१] फिर कुछ फ़रीसी और शरीअत के आलिम यरूशलम से आकर ईसा से पूछने लगे, [२] “आपके शागिर्द बापदादा की रिवायत क्यों तोड़ते हैं? क्योंकि वह हाथ धोए बग़ैर रोटी खाते हैं।” [३] ईसा ने जवाब दिया, “और तुम अपनी रिवायात की ख़ातिर अल्लाह का हुक्म क्यों तोड़ते हो? [४] क्योंकि अल्लाह ने फ़रमाया, ‘अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना’ और ‘जो अपने बाप या माँ पर लानत करे उसे सज़ाए-मौत दी जाए।’ [५] लेकिन जब कोई अपने वालिदैन से कहे, ‘मैं आपकी मदद नहीं कर सकता, क्योंकि मैंने मन्नत मानी है कि जो कुछ मुझे आपको देना था वह अल्लाह के लिए वक़्फ़ है’ तो तुम इसे जायज़ क़रार देते हो। [६] यों तुम कहते हो कि उसे अपने माँ-बाप की इज़्ज़त करने की ज़रूरत नहीं है। और इसी तरह तुम अल्लाह के कलाम को अपनी रिवायत की ख़ातिर मनसूख़ कर लेते हो। [७] रियाकारो! यसायाह नबी ने तुम्हारे बारे में क्या ख़ूब नबुव्वत की है, [८] ‘यह क़ौम अपने होंटों से तो मेरा एहतराम करती है लेकिन उसका दिल मुझसे दूर है। [९] वह मेरी परस्तिश करते तो हैं, लेकिन बेफ़ायदा। क्योंकि वह सिर्फ़ इनसान ही के अहकाम सिखाते हैं’।” [१०] फिर ईसा ने हुजूम को अपने पास बुलाकर कहा, “सब मेरी बात सुनो और इसे समझने की कोशिश करो। [११] कोई ऐसी चीज़ है नहीं जो इनसान के मुँह में दाख़िल होकर उसे नापाक कर सके, बल्कि जो कुछ इनसान के मुँह से निकलता है वही उसे नापाक कर देता है।” [१२] इस पर शागिर्दों ने उसके पास आकर पूछा, “क्या आपको मालूम है कि फ़रीसी यह बात सुनकर नाराज़ हुए हैं?” [१३] उसने जवाब दिया, “जो भी पौदा मेरे आसमानी बाप ने नहीं लगाया उसे जड़ से उखाड़ा जाएगा। [१४] उन्हें छोड़ दो, वह अंधे राह दिखानेवाले हैं। अगर एक अंधा दूसरे अंधे की राहनुमाई करे तो दोनों गढ़े में गिर जाएंगे।” [१५] पतरस बोल उठा, “इस तमसील का मतलब हमें बताएँ।” [१६] ईसा ने कहा, “क्या तुम अभी तक इतने नासमझ हो? [१७] क्या तुम नहीं समझ सकते कि जो कुछ इनसान के मुँह में दाख़िल हो जाता है वह उसके मेदे में जाता है और वहाँ से निकलकर जाए-ज़रूरत में? [१८] लेकिन जो कुछ इनसान के मुँह से निकलता है वह दिल से आता है। वही इनसान को नापाक करता है। [१९] दिल ही से बुरे ख़यालात, क़त्लो-ग़ारत, ज़िनाकारी, हरामकारी, चोरी, झूटी गवाही और बुहतान निकलते हैं। [२०] यही कुछ इनसान को नापाक कर देता है, लेकिन हाथ धोए बग़ैर खाना खाने से वह नापाक नहीं होता।”

Text is under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International license.

लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

0:00

0:00