[१] एक दिन फ़रीसी और सदूक़ी ईसा के पास आए। उसे परखने के लिए उन्होंने मुतालबा किया कि वह उन्हें आसमान की तरफ़ से कोई इलाही निशान दिखाए ताकि उसका इख़्तियार साबित हो जाए। [२] लेकिन उसने जवाब दिया, “शाम को तुम कहते हो, ‘कल मौसम साफ़ होगा क्योंकि आसमान सुर्ख़ नज़र आता है।’ [३] और सुबह के वक़्त कहते हो, ‘आज तूफ़ान होगा क्योंकि आसमान सुर्ख़ है और बादल छाए हुए हैं।’ ग़रज़ तुम आसमान की हालत पर ग़ौर करके सहीह नतीजा निकाल लेते हो, लेकिन ज़मानों की अलामतों पर ग़ौर करके सहीह नतीजे तक पहुँचना तुम्हारे बस की बात नहीं है। [४] सिर्फ़ शरीर और ज़िनाकार नसल इलाही निशान का तक़ाज़ा करती है। लेकिन उसे कोई भी इलाही निशान पेश नहीं किया जाएगा सिवाए यूनुस नबी के निशान के।”
यह कहकर ईसा उन्हें छोड़कर चला गया।
[५] झील को पार करते वक़्त शागिर्द अपने साथ खाना लाना भूल गए थे। [६] ईसा ने उनसे कहा, “ख़बरदार, फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होशियार रहना।”
[७] शागिर्द आपस में बहस करने लगे, “वह इसलिए कह रहे होंगे कि हम खाना साथ नहीं लाए।”
[८] ईसा को मालूम हुआ कि वह क्या सोच रहे हैं। उसने कहा, “तुम आपस में क्यों बहस कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं है? [९] क्या तुम अभी तक नहीं समझते? क्या तुम्हें याद नहीं कि मैंने पाँच रोटियाँ लेकर ५,००० आदमियों को खाना खिला दिया और कि तुमने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे? [१०] या क्या तुम भूल गए हो कि मैंने सात रोटियाँ लेकर ४,००० आदमियों को खाना खिलाया और कि तुमने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे? [११] तुम क्यों नहीं समझते कि मैं तुमसे खाने की बात नहीं कर रहा? सुनो मेरी बात! फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होशियार रहो!”
[१२] फिर उन्हें समझ आई कि ईसा उन्हें रोटी के ख़मीर से आगाह नहीं कर रहा था बल्कि फ़रीसियों और सदूक़ियों की तालीम से।
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