दूसरों को मुआफ़ करना

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती १८:१५-३५

[१५] अगर तेरे भाई ने तेरा गुनाह किया हो तो अकेले उसके पास जाकर उस पर उसका गुनाह ज़ाहिर कर। अगर वह तेरी बात माने तो तूने अपने भाई को जीत लिया। [१६] लेकिन अगर वह न माने तो एक या दो और लोगों को अपने साथ ले जा ताकि तुम्हारी हर बात की दो या तीन गवाहों से तसदीक़ हो जाए। [१७] अगर वह उनकी बात भी न माने तो जमात को बता देना। और अगर वह जमात की भी न माने तो उसके साथ ग़ैरईमानदार या टैक्स लेनेवाले का-सा सुलूक कर। [१८] मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो कुछ भी तुम ज़मीन पर बान्धोगे आसमान पर भी बँधेगा, और जो कुछ ज़मीन पर खोलोगे आसमान पर भी खुलेगा। [१९] मैं तुमको यह भी बताता हूँ कि अगर तुममें से दो शख़्स किसी बात को माँगने पर मुत्तफ़िक़ हो जाएँ तो मेरा आसमानी बाप तुमको बख़्शेगा। [२०] क्योंकि जहाँ भी दो या तीन अफ़राद मेरे नाम में जमा हो जाएँ वहाँ मैं उनके दरमियान हूँगा।” [२१] फिर पतरस ने ईसा के पास आकर पूछा, “ख़ुदावंद, जब मेरा भाई मेरा गुनाह करे तो मैं कितनी बार उसे मुआफ़ करूँ? सात बार तक?” [२२] ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे बताता हूँ, सात बार नहीं बल्कि ७७ बार। [२३] इसलिए आसमान की बादशाही एक बादशाह की मानिंद है जो अपने नौकरों के कर्ज़ों का हिसाब-किताब करना चाहता था। [२४] हिसाब-किताब शुरू करते वक़्त एक आदमी उसके सामने पेश किया गया जो अरबों के हिसाब से उसका क़र्ज़दार था। [२५] वह यह रक़म अदा न कर सका, इसलिए उसके मालिक ने यह क़र्ज़ वसूल करने के लिए हुक्म दिया कि उसे बाल-बच्चों और तमाम मिलकियत समेत फ़रोख़्त कर दिया जाए। [२६] यह सुनकर नौकर मुँह के बल गिरा और मिन्नत करने लगा, ‘मुझे मोहलत दें, मैं पूरी रक़म अदा कर दूँगा।’ [२७] बादशाह को उस पर तरस आया। उसने उसका क़र्ज़ मुआफ़ करके उसे जाने दिया। [२८] लेकिन जब यही नौकर बाहर निकला तो एक हमख़िदमत मिला जो उसका चंद हज़ार रूपों का क़र्ज़दार था। उसे पकड़कर वह उसका गला दबाकर कहने लगा, ‘अपना क़र्ज़ अदा कर!’ [२९] दूसरा नौकर गिरकर मिन्नत करने लगा, ‘मुझे मोहलत दें, मैं आपको सारी रक़म अदा कर दूँगा।’ [३०] लेकिन वह इसके लिए तैयार न हुआ, बल्कि जाकर उसे उस वक़्त तक जेल में डलवाया जब तक वह पूरी रक़म अदा न कर दे। [३१] जब बाक़ी नौकरों ने यह देखा तो उन्हें शदीद दुख हुआ और उन्होंने अपने मालिक के पास जाकर सब कुछ बता दिया जो हुआ था। [३२] इस पर मालिक ने उस नौकर को अपने पास बुला लिया और कहा, ‘शरीर नौकर! जब तूने मेरी मिन्नत की तो मैंने तेरा पूरा क़र्ज़ मुआफ़ कर दिया। [३३] क्या लाज़िम न था कि तू भी अपने साथी नौकर पर उतना रहम करता जितना मैंने तुझ पर किया था?’ [३४] ग़ुस्से में मालिक ने उसे जेल के अफ़सरों के हवाले कर दिया ताकि उस पर उस वक़्त तक तशद्दुद किया जाए जब तक वह क़र्ज़ की पूरी रक़म अदा न कर दे। [३५] मेरा आसमानी बाप तुममें से हर एक के साथ भी ऐसा ही करेगा अगर तुमने अपने भाई को पूरे दिल से मुआफ़ न किया।”

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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