[१८] अगले दिन सुबह-सवेरे जब वह यरूशलम लौट रहा था तो ईसा को भूक लगी। [१९] रास्ते के क़रीब अंजीर का एक दरख़्त देखकर वह उसके पास गया। लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा कि फल नहीं लगा बल्कि सिर्फ़ पत्ते ही पत्ते हैं। इस पर उसने दरख़्त से कहा, “अब से कभी भी तुझमें फल न लगे!” दरख़्त फ़ौरन सूख गया।
[२०] यह देखकर शागिर्द हैरान हुए और कहा, “अंजीर का दरख़्त इतनी जल्दी से किस तरह सूख गया?”
[२१] ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ, अगर तुम शक न करो बल्कि ईमान रखो तो फिर तुम न सिर्फ़ ऐसा काम कर सकोगे बल्कि इससे भी बड़ा। तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘उठ, अपने आपको समुंदर में गिरा दे’ तो यह हो जाएगा। [२२] अगर तुम ईमान रखो तो जो कुछ भी तुम दुआ में माँगोगे वह तुमको मिल जाएगा।”
[२३] ईसा बैतुल-मुक़द्दस में दाख़िल होकर तालीम देने लगा। इतने में राहनुमा इमाम और क़ौम के बुज़ुर्ग उसके पास आए और पूछा, “आप यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहे हैं? किसने आपको यह इख़्तियार दिया है?”
[२४] ईसा ने जवाब दिया, “मेरा भी तुमसे एक सवाल है। इसका जवाब दो तो फिर तुमको बता दूँगा कि मैं यह किस इख़्तियार से कर रहा हूँ। [२५] मुझे बताओ कि यहया का बपतिस्मा कहाँ से था—क्या वह आसमानी था या इनसानी?”
वह आपस में बहस करने लगे, “अगर हम कहें ‘आसमानी’ तो वह पूछेगा, ‘तो फिर तुम उस पर ईमान क्यों न लाए?’ [२६] लेकिन हम कैसे कह सकते हैं कि वह इनसानी था? हम तो आम लोगों से डरते हैं, क्योंकि वह सब मानते हैं कि यहया नबी था।” [२७] चुनाँचे उन्होंने जवाब दिया, “हम नहीं जानते।”
ईसा ने कहा, “फिर मैं भी तुमको नहीं बताता कि मैं यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहा हूँ।
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