फरीसियों के साथ झगड़ा

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती २१:१८-२७

[१८] अगले दिन सुबह-सवेरे जब वह यरूशलम लौट रहा था तो ईसा को भूक लगी। [१९] रास्ते के क़रीब अंजीर का एक दरख़्त देखकर वह उसके पास गया। लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा कि फल नहीं लगा बल्कि सिर्फ़ पत्ते ही पत्ते हैं। इस पर उसने दरख़्त से कहा, “अब से कभी भी तुझमें फल न लगे!” दरख़्त फ़ौरन सूख गया। [२०] यह देखकर शागिर्द हैरान हुए और कहा, “अंजीर का दरख़्त इतनी जल्दी से किस तरह सूख गया?” [२१] ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ, अगर तुम शक न करो बल्कि ईमान रखो तो फिर तुम न सिर्फ़ ऐसा काम कर सकोगे बल्कि इससे भी बड़ा। तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘उठ, अपने आपको समुंदर में गिरा दे’ तो यह हो जाएगा। [२२] अगर तुम ईमान रखो तो जो कुछ भी तुम दुआ में माँगोगे वह तुमको मिल जाएगा।” [२३] ईसा बैतुल-मुक़द्दस में दाख़िल होकर तालीम देने लगा। इतने में राहनुमा इमाम और क़ौम के बुज़ुर्ग उसके पास आए और पूछा, “आप यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहे हैं? किसने आपको यह इख़्तियार दिया है?” [२४] ईसा ने जवाब दिया, “मेरा भी तुमसे एक सवाल है। इसका जवाब दो तो फिर तुमको बता दूँगा कि मैं यह किस इख़्तियार से कर रहा हूँ। [२५] मुझे बताओ कि यहया का बपतिस्मा कहाँ से था—क्या वह आसमानी था या इनसानी?” वह आपस में बहस करने लगे, “अगर हम कहें ‘आसमानी’ तो वह पूछेगा, ‘तो फिर तुम उस पर ईमान क्यों न लाए?’ [२६] लेकिन हम कैसे कह सकते हैं कि वह इनसानी था? हम तो आम लोगों से डरते हैं, क्योंकि वह सब मानते हैं कि यहया नबी था।” [२७] चुनाँचे उन्होंने जवाब दिया, “हम नहीं जानते।” ईसा ने कहा, “फिर मैं भी तुमको नहीं बताता कि मैं यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहा हूँ।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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