फरीसियों पर इंसाफ, भाग १

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती २३:१-१५

[१] फिर ईसा हुजूम और अपने शागिर्दों से मुख़ातिब हुआ, [२] “शरीअत के उलमा और फ़रीसी मूसा की कुरसी पर बैठे हैं। [३] चुनाँचे जो कुछ वह तुमको बताते हैं वह करो और उसके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारो। लेकिन जो कुछ वह करते हैं वह न करो, क्योंकि वह ख़ुद अपनी तालीम के मुताबिक़ ज़िंदगी नहीं गुज़ारते। [४] वह भारी गठड़ियाँ बाँध बाँधकर लोगों के कंधों पर रख देते हैं, लेकिन ख़ुद उन्हें उठाने के लिए एक उँगली तक हिलाने को तैयार नहीं होते। [५] जो भी करते हैं दिखावे के लिए करते हैं। जो तावीज़ वह अपने बाज़ुओं और पेशानियों पर बाँधते और जो फुँदने अपने लिबास से लगाते हैं वह ख़ास बड़े होते हैं। [६] उनकी बस एक ही ख़ाहिश होती है कि ज़ियाफ़तों और इबादतख़ानों में इज़्ज़त की कुरसियों पर बैठ जाएँ। [७] जब लोग बाज़ारों में सलाम करके उनकी इज़्ज़त करते और ‘उस्ताद’ कहकर उनसे बात करते हैं तो फिर वह ख़ुश हो जाते हैं। [८] लेकिन तुमको उस्ताद नहीं कहलाना चाहिए, क्योंकि तुम्हारा सिर्फ़ एक ही उस्ताद है जबकि तुम सब भाई हो। [९] और दुनिया में किसी को ‘बाप’ कहकर उससे बात न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही बाप है और वह आसमान पर है। [१०] हादी न कहलाना क्योंकि तुम्हारा सिर्फ़ एक ही हादी है यानी अल-मसीह। [११] तुममें से सबसे बड़ा शख़्स तुम्हारा ख़ादिम होगा। [१२] क्योंकि जो भी अपने आपको सरफ़राज़ करेगा उसे पस्त किया जाएगा और जो अपने आपको पस्त करेगा उसे सरफ़राज़ किया जाएगा। [१३] शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! तुम लोगों के सामने आसमान की बादशाही पर ताला लगाते हो। न तुम ख़ुद दाख़िल होते हो, न उन्हें दाख़िल होने देते हो जो अंदर जाना चाहते हैं। [१४] [शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! तुम बेवाओं के घरों पर क़ब्ज़ा कर लेते और दिखावे के लिए लंबी लंबी नमाज़ पढ़ते हो। इसलिए तुम्हें ज़्यादा सज़ा मिलेगी।] [१५] शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! तुम एक नौमुरीद बनाने की ख़ातिर ख़ुश्की और तरी के लंबे सफ़र करते हो। और जब इसमें कामयाब हो जाते हो तो तुम उस शख़्स को अपनी निसबत जहन्नुम का दुगना शरीर फ़रज़ंद बना देते हो।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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