[१६] अंधे राहनुमाओ, तुम पर अफ़सोस! तुम कहते हो, ‘अगर कोई बैतुल-मुक़द्दस की क़सम खाए तो ज़रूरी नहीं कि वह उसे पूरा करे। लेकिन अगर वह बैतुल-मुक़द्दस के सोने की क़सम खाए तो लाज़िम है कि उसे पूरा करे।’ [१७] अंधे अहमक़ो! ज़्यादा अहम किया है, सोना या बैतुल-मुक़द्दस जो सोने को मख़सूसो-मुक़द्दस बनाता है? [१८] तुम यह भी कहते हो, ‘अगर कोई क़ुरबानगाह की क़सम खाए तो ज़रूरी नहीं कि वह उसे पूरा करे। लेकिन अगर वह क़ुरबानगाह पर पड़े हदिये की क़सम खाए तो लाज़िम है कि वह उसे पूरा करे।’ [१९] अंधो! ज़्यादा अहम किया है, हदिया या क़ुरबानगाह जो हदिये को मख़सूसो-मुक़द्दस बनाती है? [२०] ग़रज़, जो क़ुरबानगाह की क़सम खाता है वह उन तमाम चीज़ों की क़सम भी खाता है जो उस पर पड़ी हैं। [२१] और जो बैतुल-मुक़द्दस की क़सम खाता है वह उस की भी क़सम खाता है जो उसमें सुकूनत करता है। [२२] और जो आसमान की क़सम खाता है वह अल्लाह के तख़्त की और उस पर बैठनेवाले की क़सम भी खाता है।
[२३] शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! गो तुम बड़ी एहतियात से पौदीने, अजवायन और ज़ीरे का दसवाँ हिस्सा हदिये के लिए मख़सूस करते हो, लेकिन तुमने शरीअत की ज़्यादा अहम बातों को नज़रंदाज़ कर दिया है यानी इनसाफ़, रहम और वफ़ादारी को। लाज़िम है कि तुम यह काम भी करो और पहला भी न छोड़ो। [२४] अंधे राहनुमाओ! तुम अपने मशरूब छानते हो ताकि ग़लती से मच्छर न पी लिया जाए, लेकिन साथ साथ ऊँट को निगल लेते हो।
[२५] शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! तुम बाहर से हर प्याले और बरतन की सफ़ाई करते हो, लेकिन अंदर से वह लूट-मार और ऐशपरस्ती से भरे होते हैं। [२६] अंधे फ़रीसियो, पहले अंदर से प्याले और बरतन की सफ़ाई करो, और फिर वह बाहर से भी पाक-साफ़ हो जाएंगे।
[२७] शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! तुम ऐसी क़ब्रों से मुताबिक़त रखते हो जिन पर सफेदी की गई हो। गो वह बाहर से दिलकश नज़र आती हैं, लेकिन अंदर से वह मुरदों की हड्डियों और हर क़िस्म की नापाकी से भरी होती हैं। [२८] तुम भी बाहर से रास्तबाज़ दिखाई देते हो जबकि अंदर से तुम रियाकारी और बेदीनी से मामूर होते हो।
[२९] शरीअत के आलिमो और फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! रियाकारो! तुम नबियों के लिए क़ब्रें तामीर करते और रास्तबाज़ों के मज़ार सजाते हो। [३०] और तुम कहते हो, ‘अगर हम अपने बापदादा के ज़माने में ज़िंदा होते तो नबियों को क़त्ल करने में शरीक न होते।’ [३१] लेकिन यह कहने से तुम अपने ख़िलाफ़ गवाही देते हो कि तुम नबियों के क़ातिलों की औलाद हो। [३२] अब जाओ, वह काम मुकम्मल करो जो तुम्हारे बापदादा ने अधूरा छोड़ दिया था। [३३] साँपो, ज़हरीले साँपों के बच्चो! तुम किस तरह जहन्नुम की सज़ा से बच पाओगे? [३४] इसलिए मैं नबियों, दानिशमंदों और शरीअत के आलिमों को तुम्हारे पास भेज देता हूँ। उनमें से बाज़ को तुम क़त्ल और मसलूब करोगे और बाज़ को अपने इबादतख़ानों में ले जाकर कोड़े लगवाओगे और शहर बशहर उनका ताक़्क़ुब करोगे। [३५] नतीजे में तुम तमाम रास्तबाज़ों के क़त्ल के ज़िम्मादार ठहरोगे—रास्तबाज़ हाबील के क़त्ल से लेकर ज़करियाह बिन बरकियाह के क़त्ल तक जिसे तुमने बैतुल-मुक़द्दस के दरवाज़े और उसके सहन में मौजूद क़ुरबानगाह के दरमियान मार डाला। [३६] मैं तुमको सच बताता हूँ कि यह सब कुछ इसी नसल पर आएगा।
[३७] हाय यरूशलम, यरूशलम! तू जो नबियों को क़त्ल करती और अपने पास भेजे हुए पैग़ंबरों को संगसार करती है। मैंने कितनी ही बार तेरी औलाद को जमा करना चाहा, बिलकुल उसी तरह जिस तरह मुरग़ी अपने बच्चों को अपने परों तले जमा करके महफ़ूज़ कर लेती है। लेकिन तुमने न चाहा। [३८] अब तुम्हारे घर को वीरानो-सुनसान छोड़ा जाएगा। [३९] क्योंकि मैं तुमको बताता हूँ, तुम मुझे उस वक़्त तक दुबारा नहीं देखोगे जब तक तुम न कहो कि मुबारक है वह जो रब के नाम से आता है।”
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