[१] उस वक़्त आसमान की बादशाही दस कुँवारियों से मुताबिक़त रखेगी जो अपने चराग़ लेकर दूल्हे को मिलने के लिए निकलें। [२] उनमें से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार। [३] नासमझ कुँवारियों ने अपने पास चराग़ों के लिए फ़ाल्तू तेल न रखा। [४] लेकिन समझदार कुँवारियों ने कुप्पी में तेल डालकर अपने साथ ले लिया। [५] दूल्हे को आने में बड़ी देर लगी, इसलिए वह सब ऊँघ ऊँघकर सो गईं।
[६] आधी रात को शोर मच गया, ‘देखो, दूल्हा पहुँच रहा है, उसे मिलने के लिए निकलो!’ [७] इस पर तमाम कुँवारियाँ जाग उठीं और अपने चराग़ों को दुरुस्त करने लगीं। [८] नासमझ कुँवारियों ने समझदार कुँवारियों से कहा, ‘अपने तेल में से हमें भी कुछ दे दो। हमारे चराग़ बुझनेवाले हैं।’ [९] दूसरी कुँवारियों ने जवाब दिया, ‘नहीं, ऐसा न हो कि न सिर्फ़ तुम्हारे लिए बल्कि हमारे लिए भी तेल काफ़ी न हो। दुकान पर जाकर अपने लिए ख़रीद लो।’ [१०] चुनाँचे नासमझ कुँवारियाँ चली गईं। लेकिन इस दौरान दूल्हा पहुँच गया। जो कुँवारियाँ तैयार थीं वह उसके साथ शादी हाल में दाख़िल हुईं। फिर दरवाज़े को बंद कर दिया गया।
[११] कुछ देर के बाद बाक़ी कुँवारियाँ आईं और चिल्लाने लगीं, ‘जनाब! हमारे लिए दरवाज़ा खोल दें।’ [१२] लेकिन उसने जवाब दिया, ‘यक़ीन जानो, मैं तुमको नहीं जानता।’
[१३] इसलिए चौकस रहो, क्योंकि तुम इब्ने-आदम के आने का दिन या वक़्त नहीं जानते।
Text is under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International license.