[३१] ईसा ने उन्हें बताया, “आज रात तुम सब मेरी बाबत बरगश्ता हो जाओगे, क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में अल्लाह फ़रमाता है, ‘मैं चरवाहे को मार डालूँगा और रेवड़ की भेड़ें तित्तर-बित्तर हो जाएँगी।’ [३२] लेकिन अपने जी उठने के बाद मैं तुम्हारे आगे आगे गलील पहुँचूँगा।”
[३३] पतरस ने एतराज़ किया, “दूसरे बेशक सब आपकी बाबत बरगश्ता हो जाएँ, लेकिन मैं कभी नहीं हूँगा।”
[३४] ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, इसी रात मुरग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।”
[३५] पतरस ने कहा, “हरगिज़ नहीं! मैं आपको जानने से कभी इनकार नहीं करूँगा, चाहे मुझे आपके साथ मरना भी पड़े।”
दूसरों ने भी यही कुछ कहा।
[३६] ईसा अपने शागिर्दों के साथ एक बाग़ में पहुँचा जिसका नाम गत्समनी था। उसने उनसे कहा, “यहाँ बैठकर मेरा इंतज़ार करो। मैं दुआ करने के लिए आगे जाता हूँ।” [३७] उसने पतरस और ज़बदी के दो बेटों याक़ूब और यूहन्ना को साथ लिया। वहाँ वह ग़मगीन और बेक़रार होने लगा। [३८] उसने उनसे कहा, “मैं दुख से इतना दबा हुआ हूँ कि मरने को हूँ। यहाँ ठहरकर मेरे साथ जागते रहो।”
[३९] कुछ आगे जाकर वह औंधे मुँह ज़मीन पर गिरकर यों दुआ करने लगा, “ऐ मेरे बाप, अगर मुमकिन हो तो दुख का यह प्याला मुझसे हट जाए। लेकिन मेरी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”
[४०] वह अपने शागिर्दों के पास वापस आया तो देखा कि वह सो रहे हैं। उसने पतरस से पूछा, “क्या तुम लोग एक घंटा भी मेरे साथ नहीं जाग सके? [४१] जागते और दुआ करते रहो ताकि आज़माइश में न पड़ो। क्योंकि रूह तो तैयार है लेकिन जिस्म कमज़ोर।”
[४२] एक बार फिर उसने जाकर दुआ की, “मेरे बाप, अगर यह प्याला मेरे पिए बग़ैर हट नहीं सकता तो फिर तेरी मरज़ी पूरी हो।” [४३] जब वह वापस आया तो दुबारा देखा कि वह सो रहे हैं, क्योंकि नींद की बदौलत उनकी आँखें बोझल थीं।
[४४] चुनाँचे वह उन्हें दुबारा छोड़कर चला गया और तीसरी बार यही दुआ करने लगा। [४५] फिर ईसा शागिर्दों के पास वापस आया और उनसे कहा, “अभी तक सो और आराम कर रहे हो? देखो, वक़्त आ गया है कि इब्ने-आदम गुनाहगारों के हवाले किया जाए। [४६] उठो! आओ, चलें। देखो, मुझे दुश्मन के हवाले करनेवाला क़रीब आ चुका है।”
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