ईसा अलैहिस्सलाम की गिरिफ़्तारी

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती २६:४७-५६

[४७] वह अभी यह बात कर ही रहा था कि यहूदा पहुँच गया, जो बारह शागिर्दों में से एक था। उसके साथ तलवारों और लाठियों से लेस आदमियों का बड़ा हुजूम था। उन्हें राहनुमा इमामों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने भेजा था। [४८] इस ग़द्दार यहूदा ने उन्हें एक इम्तियाज़ी निशान दिया था कि जिसको मैं बोसा दूँ वही ईसा है। उसे गिरिफ़्तार कर लेना। [४९] ज्योंही वह पहुँचे यहूदा ईसा के पास गया और “उस्ताद, अस्सलामु अलैकुम!” कहकर उसे बोसा दिया। [५०] ईसा ने कहा, “दोस्त, क्या तू इसी मक़सद से आया है?” फिर उन्होंने उसे पकड़कर गिरिफ़्तार कर लिया। [५१] इस पर ईसा के एक साथी ने अपनी तलवार मियान से निकाली और इमामे-आज़म के ग़ुलाम को मारकर उसका कान उड़ा दिया। [५२] लेकिन ईसा ने कहा, “अपनी तलवार को मियान में रख, क्योंकि जो भी तलवार चलाता है उसे तलवार से मारा जाएगा। [५३] या क्या तू नहीं समझता कि मेरा बाप मुझे हज़ारों फ़रिश्ते फ़ौरन भेज देगा अगर मैं उन्हें तलब करूँ? [५४] लेकिन अगर मैं ऐसा करता तो फिर कलामे-मुक़द्दस की पेशगोइयाँ किस तरह पूरी होतीं जिनके मुताबिक़ यह ऐसा ही होना है?” [५५] उस वक़्त ईसा ने हुजूम से कहा, “क्या मैं डाकू हूँ कि तुम तलवारें और लाठियाँ लिए मुझे गिरिफ़्तार करने निकले हो? मैं तो रोज़ाना बैतुल-मुक़द्दस में बैठकर तालीम देता रहा, मगर तुमने मुझे गिरिफ़्तार नहीं किया। [५६] लेकिन यह सब कुछ इसलिए हो रहा है ताकि नबियों के सहीफ़ों में दर्ज पेशगोइयाँ पूरी हो जाएँ।” फिर तमाम शागिर्द उसे छोड़कर भाग गए।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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