[१] सुबह-सवेरे तमाम राहनुमा इमाम और क़ौम के तमाम बुज़ुर्ग इस फ़ैसले तक पहुँच गए कि ईसा को सज़ाए-मौत दी जाए। [२] वह उसे बाँधकर वहाँ से ले गए और रोमी गवर्नर पीलातुस के हवाले कर दिया।
[३] जब यहूदा ने जिसने उसे दुश्मन के हवाले कर दिया था देखा कि उस पर सज़ाए-मौत का फ़तवा दे दिया गया है तो उसने पछताकर चाँदी के ३० सिक्के राहनुमा इमामों और क़ौम के बुज़ुर्गों को वापस कर दिए। [४] उसने कहा, “मैंने गुनाह किया है, क्योंकि एक बेक़ुसूर आदमी को सज़ाए-मौत दी गई है और मैं ही ने उसे आपके हवाले किया है।”
उन्होंने जवाब दिया, “हमें क्या! यह तेरा मसला है।” [५] यहूदा चाँदी के सिक्के बैतुल-मुक़द्दस में फेंककर चला गया। फिर उसने जाकर फाँसी ले ली।
[६] राहनुमा इमामों ने सिक्कों को जमा करके कहा, “शरीअत यह पैसे बैतुल-मुक़द्दस के ख़ज़ाने में डालने की इजाज़त नहीं देती, क्योंकि यह ख़ूनरेज़ी का मुआवज़ा है।” [७] आपस में मशवरा करने के बाद उन्होंने कुम्हार का खेत ख़रीदने का फ़ैसला किया ताकि परदेसियों को दफ़नाने के लिए जगह हो। [८] इसलिए यह खेत आज तक ख़ून का खेत कहलाता है।
[९] यों यरमियाह नबी की यह पेशगोई पूरी हुई कि “उन्होंने चाँदी के ३० सिक्के लिए यानी वह रक़म जो इसराईलियों ने उसके लिए लगाई थी। [१०] इनसे उन्होंने कुम्हार का खेत ख़रीद लिया, बिलकुल ऐसा जिस तरह रब ने मुझे हुक्म दिया था।”
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