पीलातुस

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती २७:११-२६

[११] इतने में ईसा को रोमी गवर्नर पीलातुस के सामने पेश किया गया। उसने उससे पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?” ईसा ने जवाब दिया, “जी, आप ख़ुद कहते हैं।” [१२] लेकिन जब राहनुमा इमामों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने उस पर इलज़ाम लगाए तो ईसा ख़ामोश रहा। [१३] चुनाँचे पीलातुस ने दुबारा उससे सवाल किया, “क्या तुम यह तमाम इलज़ामात नहीं सुन रहे जो तुम पर लगाए जा रहे हैं?” [१४] लेकिन ईसा ने एक इलज़ाम का भी जवाब न दिया, इसलिए गवर्नर निहायत हैरान हुआ। [१५] उन दिनों यह रिवाज था कि गवर्नर हर साल फ़सह की ईद पर एक क़ैदी को आज़ाद कर देता था। यह क़ैदी हुजूम से मुंतख़ब किया जाता था। [१६] उस वक़्त जेल में एक बदनाम क़ैदी था। उसका नाम बर-अब्बा था। [१७] चुनाँचे जब हुजूम जमा हुआ तो पीलातुस ने उससे पूछा, “तुम क्या चाहते हो? मैं बर-अब्बा को आज़ाद करूँ या ईसा को जो मसीह कहलाता है?” [१८] वह तो जानता था कि उन्होंने ईसा को सिर्फ़ हसद की बिना पर उसके हवाले किया है। [१९] जब पीलातुस यों अदालत के तख़्त पर बैठा था तो उस की बीवी ने उसे पैग़ाम भेजा, “इस बेक़ुसूर आदमी को हाथ न लगाएँ, क्योंकि मुझे पिछली रात इसके बाइस ख़ाब में शदीद तकलीफ़ हुई।” [२०] लेकिन राहनुमा इमामों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने हुजूम को उकसाया कि वह बर-अब्बा को माँगें और ईसा की मौत तलब करें। गवर्नर ने दुबारा पूछा, [२१] “मैं इन दोनों में से किस को तुम्हारे लिए आज़ाद करूँ?” वह चिल्लाए, “बर-अब्बा को।” [२२] पीलातुस ने पूछा, “फिर मैं ईसा के साथ क्या करूँ जो मसीह कहलाता है?” वह चीख़े, “उसे मसलूब करें।” [२३] पीलातुस ने पूछा, “क्यों? उसने क्या जुर्म किया है?” लेकिन लोग मज़ीद शोर मचाकर चीख़ते रहे, “उसे मसलूब करें!” [२४] पीलातुस ने देखा कि वह किसी नतीजे तक नहीं पहुँच रहा बल्कि हंगामा बरपा हो रहा है। इसलिए उसने पानी लेकर हुजूम के सामने अपने हाथ धोए। उसने कहा, “अगर इस आदमी को क़त्ल किया जाए तो मैं बेक़ुसूर हूँ, तुम ही उसके लिए जवाबदेह ठहरो।” [२५] तमाम लोगों ने जवाब दिया, “हम और हमारी औलाद उसके ख़ून के जवाबदेह हैं।” [२६] फिर उसने बर-अब्बा को आज़ाद करके उन्हें दे दिया। लेकिन ईसा को उसने कोड़े लगाने का हुक्म दिया, फिर उसे मसलूब करने के लिए फ़ौजियों के हवाले कर दिया।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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