फ़सह की ईद

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

ख़ुरूज १२:१-२८

[१] फिर रब ने मिसर में मूसा और हारून से कहा, [२] “अब से यह महीना तुम्हारे लिए साल का पहला महीना हो।” [३] इसराईल की पूरी जमात को बताना कि इस महीने के दसवें दिन हर ख़ानदान का सरपरस्त अपने घराने के लिए लेला यानी भेड़ या बकरी का बच्चा हासिल करे। [४] अगर घराने के अफ़राद पूरा जानवर खाने के लिए कम हों तो वह अपने सबसे क़रीबी पड़ोसी के साथ मिलकर लेला हासिल करें। इतने लोग उसमें से खाएँ कि सबके लिए काफ़ी हो और पूरा जानवर खाया जाए। [५] इसके लिए एक साल का नर बच्चा चुन लेना जिसमें नुक़्स न हो। वह भेड़ या बकरी का बच्चा हो सकता है। [६] महीने के १४वें दिन तक उस की देख-भाल करो। उस दिन तमाम इसराईली सूरज के ग़ुरूब होते वक़्त अपने लेले ज़बह करें। [७] हर ख़ानदान अपने जानवर का कुछ ख़ून जमा करके उसे उस घर के दरवाज़े की चौखट पर लगाए जहाँ लेला खाया जाएगा। यह ख़ून चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगाया जाए। [८] लाज़िम है कि लोग जानवर को भूनकर उसी रात खाएँ। साथ ही वह कड़वा साग-पात और बेख़मीरी रोटियाँ भी खाएँ। [९] लेले का गोश्त कच्चा न खाना, न उसे पानी में उबालना बल्कि पूरे जानवर को सर, पैरों और अंदरूनी हिस्सों समेत आग पर भूनना। [१०] लाज़िम है कि पूरा गोश्त उसी रात खाया जाए। अगर कुछ सुबह तक बच जाए तो उसे जलाना है। [११] खाना खाते वक़्त ऐसा लिबास पहनना जैसे तुम सफ़र पर जा रहे हो। अपने जूते पहने रखना और हाथ में सफ़र के लिए लाठी लिए हुए तुम उसे जल्दी जल्दी खाना। रब के फ़सह की ईद यों मनाना। [१२] मैं आज रात मिसर में से गुज़रूँगा और हर पहलौठे को जान से मार दूँगा, ख़ाह इनसान का हो या हैवान का। यों मैं जो रब हूँ मिसर के तमाम देवताओं की अदालत करूँगा। [१३] लेकिन तुम्हारे घरों पर लगा हुआ ख़ून तुम्हारा ख़ास निशान होगा। जिस जिस घर के दरवाज़े पर मैं वह ख़ून देखूँगा उसे छोड़ता जाऊँगा। जब मैं मिसर पर हमला करूँगा तो मोहलक वबा तुम तक नहीं पहुँचेगी। [१४] आज की रात को हमेशा याद रखना। इसे नसल-दर-नसल और हर साल रब की ख़ास ईद के तौर पर मनाना। [१५] सात दिन तक बेख़मीरी रोटी खाना है। पहले दिन अपने घरों से तमाम ख़मीर निकाल देना। अगर कोई इन सात दिनों के दौरान ख़मीर खाए तो उसे क़ौम में से मिटाया जाए। [१६] इस ईद के पहले और आख़िरी दिन मुक़द्दस इजतिमा मुनअक़िद करना। इन तमाम दिनों के दौरान काम न करना। सिर्फ़ एक काम की इजाज़त है और वह है अपना खाना तैयार करना। [१७] बेख़मीरी रोटी की ईद मनाना लाज़िम है, क्योंकि उस दिन मैं तुम्हारे मुतअद्दिद ख़ानदानों को मिसर से निकाल लाया। इसलिए यह दिन नसल-दर-नसल हर साल याद रखना। [१८] पहले महीने के १४वें दिन की शाम से लेकर २१वें दिन की शाम तक सिर्फ़ बेख़मीरी रोटी खाना। [१९] सात दिन तक तुम्हारे घरों में ख़मीर न पाया जाए। जो भी इस दौरान ख़मीर खाए उसे इसराईल की जमात में से मिटाया जाए, ख़ाह वह इसराईली शहरी हो या अजनबी। [२०] ग़रज़, इस ईद के दौरान ख़मीर न खाना। जहाँ भी तुम रहते हो वहाँ बेख़मीरी रोटी ही खाना है। [२१] फिर मूसा ने तमाम इसराईली बुज़ुर्गों को बुलाकर उनसे कहा, “जाओ, अपने ख़ानदानों के लिए भेड़ या बकरी के बच्चे चुनकर उन्हें फ़सह की ईद के लिए ज़बह करो। [२२] ज़ूफ़े का गुच्छा लेकर उसे ख़ून से भरे हुए बासन में डुबो देना। फिर उसे लेकर ख़ून को चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगा देना। सुबह तक कोई अपने घर से न निकले। [२३] जब रब मिसरियों को मार डालने के लिए मुल्क में से गुज़रेगा तो वह चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगा हुआ ख़ून देखकर उन घरों को छोड़ देगा। वह हलाक करनेवाले फ़रिश्ते को इजाज़त नहीं देगा कि वह तुम्हारे घरों में जाकर तुम्हें हलाक करे। [२४] तुम अपनी औलाद समेत हमेशा इन हिदायात पर अमल करना। [२५] यह रस्म उस वक़्त भी अदा करना जब तुम उस मुल्क में पहुँचोगे जो रब तुम्हें देगा। [२६] और जब तुम्हारे बच्चे तुमसे पूछें कि हम यह ईद क्यों मनाते हैं [२७] तो उनसे कहो, ‘यह फ़सह की क़ुरबानी है जो हम रब को पेश करते हैं। क्योंकि जब रब मिसरियों को हलाक कर रहा था तो उसने हमारे घरों को छोड़ दिया था’।” यह सुनकर इसराईलियों ने अल्लाह को सिजदा किया। [२८] फिर उन्होंने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा और हारून को बताया था।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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