१० अहकाम

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

ख़ुरूज २०:१-२१

[१] तब अल्लाह ने यह तमाम बातें फ़रमाईं, [२] “मैं रब तेरा ख़ुदा हूँ जो तुझे मुल्के-मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। [३] मेरे सिवा किसी और माबूद की परस्तिश न करना। [४] अपने लिए बुत न बनाना। किसी भी चीज़ की मूरत न बनाना, चाहे वह आसमान में, ज़मीन पर या समुंदर में हो। [५] न बुतों की परस्तिश, न उनकी ख़िदमत करना, क्योंकि मैं तेरा रब ग़यूर ख़ुदा हूँ। जो मुझसे नफ़रत करते हैं उन्हें मैं तीसरी और चौथी पुश्त तक सज़ा दूँगा। [६] लेकिन जो मुझसे मुहब्बत रखते और मेरे अहकाम पूरे करते हैं उन पर मैं हज़ार पुश्तों तक मेहरबानी करूँगा। [७] रब अपने ख़ुदा का नाम बेमक़सद या ग़लत मक़सद के लिए इस्तेमाल न करना। जो भी ऐसा करता है उसे रब सज़ा दिए बग़ैर नहीं छोड़ेगा। [८] सबत के दिन का ख़याल रखना। उसे इस तरह मनाना कि वह मख़सूसो-मुक़द्दस हो। [९] हफ़ते के पहले छः दिन अपना काम-काज कर, [१०] लेकिन सातवाँ दिन रब तेरे ख़ुदा का आराम का दिन है। उस दिन किसी तरह का काम न करना। न तू, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा नौकर, न तेरी नौकरानी और न तेरे मवेशी। जो परदेसी तेरे दरमियान रहता है वह भी काम न करे। [११] क्योंकि रब ने पहले छः दिन में आसमानो-ज़मीन, समुंदर और जो कुछ उनमें है बनाया लेकिन सातवें दिन आराम किया। इसलिए रब ने सबत के दिन को बरकत देकर मुक़र्रर किया कि वह मख़सूस और मुक़द्दस हो। [१२] अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना। फिर तू उस मुल्क में जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है देर तक जीता रहेगा। [१३] क़त्ल न करना। [१४] ज़िना न करना। [१५] चोरी न करना। [१६] अपने पड़ोसी के बारे में झूटी गवाही न देना। [१७] अपने पड़ोसी के घर का लालच न करना। न उस की बीवी का, न उसके नौकर का, न उस की नौकरानी का, न उसके बैल और न उसके गधे का बल्कि उस की किसी भी चीज़ का लालच न करना।” [१८] जब बाक़ी तमाम लोगों ने बादल की गरज और नरसिंगे की आवाज़ सुनी और बिजली की चमक और पहाड़ से उठते हुए धुएँ को देखा तो वह ख़ौफ़ के मारे काँपने लगे और पहाड़ से दूर खड़े हो गए। [१९] उन्होंने मूसा से कहा, “आप ही हमसे बात करें तो हम सुनेंगे। लेकिन अल्लाह को हमसे बात न करने दें वरना हम मर जाएंगे।” [२०] लेकिन मूसा ने उनसे कहा, “मत डरो, क्योंकि रब तुम्हें जाँचने के लिए आया है, ताकि उसका ख़ौफ़ तुम्हारी आँखों के सामने रहे और तुम गुनाह न करो।” [२१] लोग दूर ही रहे जबकि मूसा उस गहरी तारीकी के क़रीब गया जहाँ अल्लाह था।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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