फ़रिश्ता से मरियम को पैग़ाम मिलना, ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

लूक़ा १:२६-३८

[२६-२७] इलीशिबा छः माह से उम्मीद से थी जब अल्लाह ने जिबराईल फ़रिश्ते को एक कुँवारी के पास भेजा जो नासरत में रहती थी। नासरत गलील का एक शहर है और कुँवारी का नाम मरियम था। उस की मँगनी एक मर्द के साथ हो चुकी थी जो दाऊद बादशाह की नसल से था और जिसका नाम यूसुफ़ था। [२८] फ़रिश्ते ने उसके पास आकर कहा, “ऐ ख़ातून जिस पर रब का ख़ास फ़ज़ल हुआ है, सलाम! रब तेरे साथ है।” [२९] मरियम यह सुनकर घबरा गई और सोचा, “यह किस तरह का सलाम है?” [३०] लेकिन फ़रिश्ते ने अपनी बात जारी रखी और कहा, “ऐ मरियम, मत डर, क्योंकि तुझ पर अल्लाह का फ़ज़ल हुआ है। [३१] तू उम्मीद से होकर एक बेटे को जन्म देगी। तुझे उसका नाम ईसा (नजात देनेवाला) रखना है। [३२] वह अज़ीम होगा और अल्लाह तआला का फ़रज़ंद कहलाएगा। रब हमारा ख़ुदा उसे उसके बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाएगा [३३] और वह हमेशा तक इसराईल पर हुकूमत करेगा। उस की सलतनत कभी ख़त्म न होगी।” [३४] मरियम ने फ़रिश्ते से कहा, “यह क्योंकर हो सकता है? अभी तो मैं कुँवारी हूँ।” [३५] फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “रूहुल-क़ुद्स तुझ पर नाज़िल होगा, अल्लाह तआला की क़ुदरत का साया तुझ पर छा जाएगा। इसलिए यह बच्चा क़ुद्दूस होगा और अल्लाह का फ़रज़ंद कहलाएगा। [३६] और देख, तेरी रिश्तेदार इलीशिबा के भी बेटा होगा हालाँकि वह उम्ररसीदा है। गो उसे बाँझ क़रार दिया गया था, लेकिन वह छः माह से उम्मीद से है। [३७] क्योंकि अल्लाह के नज़दीक कोई काम नामुमकिन नहीं है।” [३८] मरियम ने जवाब दिया, “मैं रब की ख़िदमत के लिए हाज़िर हूँ। मेरे साथ वैसा ही हो जैसा आपने कहा है।” इस पर फ़रिश्ता चला गया।

लूक़ा २: १-२०

[१] उन ऐयाम में रोम के शहनशाह औगुस्तुस ने फ़रमान जारी किया कि पूरी सलतनत की मर्दुमशुमारी की जाए। [२] यह पहली मर्दुमशुमारी उस वक़्त हुई जब कूरिनियुस शाम का गवर्नर था। [३] हर किसी को अपने वतनी शहर में जाना पड़ा ताकि वहाँ रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करवाए। [४] चुनाँचे यूसुफ़ गलील के शहर नासरत से रवाना होकर यहूदिया के शहर बैत-लहम पहुँचा। वजह यह थी कि वह दाऊद बादशाह के घराने और नसल से था, और बैत-लहम दाऊद का शहर था। [५] चुनाँचे वह अपने नाम को रजिस्टर में दर्ज करवाने के लिए वहाँ गया। उस की मंगेतर मरियम भी साथ थी। उस वक़्त वह उम्मीद से थी। [६] जब वह वहाँ ठहरे हुए थे तो बच्चे को जन्म देने का वक़्त आ पहुँचा। [७] बेटा पैदा हुआ। यह मरियम का पहला बच्चा था। उसने उसे कपड़ों में लपेटकर एक चरनी में लिटा दिया, क्योंकि उन्हें सराय में रहने की जगह नहीं मिली थी। [८] उस रात कुछ चरवाहे क़रीब के खुले मैदान में अपने रेवड़ों की पहरादारी कर रहे थे। [९] अचानक रब का एक फ़रिश्ता उन पर ज़ाहिर हुआ, और उनके इर्दगिर्द रब का जलाल चमका। यह देखकर वह सख़्त डर गए। [१०] लेकिन फ़रिश्ते ने उनसे कहा, “डरो मत! देखो मैं तुमको बड़ी ख़ुशी की ख़बर देता हूँ जो तमाम लोगों के लिए होगी। [११] आज ही दाऊद के शहर में तुम्हारे लिए नजातदहिंदा पैदा हुआ है यानी मसीह ख़ुदावंद। [१२] और तुम उसे इस निशान से पहचान लोगे, तुम एक शीरख़ार बच्चे को कपड़ों में लिपटा हुआ पाओगे। वह चरनी में पड़ा हुआ होगा।” [१३] अचानक आसमानी लशकरों के बेशुमार फ़रिश्ते उस फ़रिश्ते के साथ ज़ाहिर हुए जो अल्लाह की हम्दो-सना करके कह रहे थे, [१४] “आसमान की बुलंदियों पर अल्लाह की इज़्ज़तो-जलाल, ज़मीन पर उन लोगों की सलामती जो उसे मंज़ूर हैं।” [१५] फ़रिश्ते उन्हें छोड़कर आसमान पर वापस चले गए तो चरवाहे आपस में कहने लगे, “आओ, हम बैत-लहम जाकर यह बात देखें जो हुई है और जो रब ने हम पर ज़ाहिर की है।” [१६] वह भागकर बैत-लहम पहुँचे। वहाँ उन्हें मरियम और यूसुफ़ मिले और साथ ही छोटा बच्चा जो चरनी में पड़ा हुआ था। [१७] यह देखकर उन्होंने सब कुछ बयान किया जो उन्हें इस बच्चे के बारे में बताया गया था। [१८] जिसने भी उनकी बात सुनी वह हैरतज़दा हुआ। [१९] लेकिन मरियम को यह तमाम बातें याद रहीं और वह अपने दिल में उन पर ग़ौर करती रही। [२०] फिर चरवाहे लौट गए और चलते चलते उन तमाम बातों के लिए अल्लाह की ताज़ीमो-तारीफ़ करते रहे जो उन्होंने सुनी और देखी थीं, क्योंकि सब कुछ वैसा ही पाया था जैसा फ़रिश्ते ने उन्हें बताया था।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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