रेगिस्तान में आज़माया जाना

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती ४:१-११

[१] फिर रूहुल-क़ुद्स ईसा को रेगिस्तान में ले गया ताकि उसे इबलीस से आज़माया जाए। [२] चालीस दिन और चालीस रात रोज़ा रखने के बाद उसे आख़िरकार भूक लगी। [३] फिर आज़मानेवाला उसके पास आकर कहने लगा, “अगर तू अल्लाह का फ़रज़ंद है तो इन पत्थरों को हुक्म दे कि रोटी बन जाएँ।” [४] लेकिन ईसा ने इनकार करके कहा, “हरगिज़ नहीं, क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है कि इनसान की ज़िंदगी सिर्फ़ रोटी पर मुनहसिर नहीं होती बल्कि हर उस बात पर जो रब के मुँह से निकलती है।” [५] इस पर इबलीस ने उसे मुक़द्दस शहर यरूशलम ले जाकर बैतुल-मुक़द्दस की सबसे ऊँची जगह पर खड़ा किया और कहा, [६] “अगर तू अल्लाह का फ़रज़ंद है तो यहाँ से छलाँग लगा दे। क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, ‘वह तेरी ख़ातिर अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा, और वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे ताकि तेरे पाँवों को पत्थर से ठेस न लगे’।” [७] लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “कलामे-मुक़द्दस यह भी फ़रमाता है, ‘रब अपने ख़ुदा को न आज़माना’।” [८] फिर इबलीस ने उसे एक निहायत ऊँचे पहाड़ पर ले जाकर उसे दुनिया के तमाम ममालिक और उनकी शानो-शौकत दिखाई। [९] वह बोला, “यह सब कुछ मैं तुझे दे दूँगा, शर्त यह है कि तू गिरकर मुझे सिजदा करे।” [१०] लेकिन ईसा ने तीसरी बार इनकार किया और कहा, “इबलीस, दफ़ा हो जा! क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में यों लिखा है, ‘रब अपने ख़ुदा को सिजदा कर और सिर्फ़ उसी की इबादत कर’।” [११] इस पर इबलीस उसे छोड़कर चला गया और फ़रिश्ते आकर उस की ख़िदमत करने लगे।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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