[१] फ़रीसियों को इत्तला मिली कि ईसा यहया की निसबत ज़्यादा शागिर्द बना रहा और लोगों को बपतिस्मा दे रहा है, [२] हालाँकि वह ख़ुद बपतिस्मा नहीं देता था बल्कि उसके शागिर्द। [३] जब ख़ुदावंद ईसा को यह बात मालूम हुई तो वह यहूदिया को छोड़कर गलील को वापस चला गया। [४] वहाँ पहुँचने के लिए उसे सामरिया में से गुज़रना था।
[५] चलते चलते वह एक शहर के पास पहुँच गया जिसका नाम सूख़ार था। यह उस ज़मीन के क़रीब था जो याक़ूब ने अपने बेटे यूसुफ़ को दी थी। [६] वहाँ याक़ूब का कुआँ था। ईसा सफ़र से थक गया था, इसलिए वह कुएँ पर बैठ गया। दोपहर के तक़रीबन बारह बज गए थे।
[७] एक सामरी औरत पानी भरने आई। ईसा ने उससे कहा, “मुझे ज़रा पानी पिला।” [८] (उसके शागिर्द खाना ख़रीदने के लिए शहर गए हुए थे।)
[९] सामरी औरत ने ताज्जुब किया, क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ ताल्लुक़ रखने से इनकार करते हैं। उसने कहा, “आप तो यहूदी हैं, और मैं सामरी औरत हूँ। आप किस तरह मुझसे पानी पिलाने की दरख़ास्त कर सकते हैं?”
[१०] ईसा ने जवाब दिया, “अगर तू उस बख़्शिश से वाक़िफ़ होती जो अल्लाह तुझको देना चाहता है और तू उसे जानती जो तुझसे पानी माँग रहा है तो तू उससे माँगती और वह तुझे ज़िंदगी का पानी देता।”
[११] ख़ातून ने कहा, “ख़ुदावंद, आपके पास तो बालटी नहीं है और यह कुआँ गहरा है। आपको ज़िंदगी का यह पानी कहाँ से मिला? [१२] क्या आप हमारे बाप याक़ूब से बड़े हैं जिसने हमें यह कुआँ दिया और जो ख़ुद भी अपने बेटों और रेवड़ों समेत उसके पानी से लुत्फ़अंदोज़ हुआ?”
[१३] ईसा ने जवाब दिया, “जो भी इस पानी में से पिए उसे दुबारा प्यास लगेगी। [१४] लेकिन जिसे मैं पानी पिला दूँ उसे बाद में कभी भी प्यास नहीं लगेगी। बल्कि जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसमें एक चश्मा बन जाएगा जिससे पानी फूटकर अबदी ज़िंदगी मुहैया करेगा।”
[१५] औरत ने उससे कहा, “ख़ुदावंद, मुझे यह पानी पिला दें। फिर मुझे कभी भी प्यास नहीं लगेगी और मुझे बार बार यहाँ आकर पानी भरना नहीं पड़ेगा।”
[१६] ईसा ने कहा, “जा, अपने ख़ाविंद को बुला ला।”
[१७] औरत ने जवाब दिया, “मेरा कोई ख़ाविंद नहीं है।”
ईसा ने कहा, “तूने सहीह कहा कि मेरा ख़ाविंद नहीं है, [१८] क्योंकि तेरी शादी पाँच मर्दों से हो चुकी है और जिस आदमी के साथ तू अब रह रही है वह तेरा शौहर नहीं है। तेरी बात बिलकुल दुरुस्त है।”
[१९] औरत ने कहा, “ख़ुदावंद, मैं देखती हूँ कि आप नबी हैं। [२०] हमारे बापदादा तो इसी पहाड़ पर इबादत करते थे जबकि आप यहूदी लोग इसरार करते हैं कि यरूशलम वह मरकज़ है जहाँ हमें इबादत करनी है।”
[२१] ईसा ने जवाब दिया, “ऐ ख़ातून, यक़ीन जान कि वह वक़्त आएगा जब तुम न तो इस पहाड़ पर बाप की इबादत करोगे, न यरूशलम में। [२२] तुम सामरी उस की परस्तिश करते हो जिसे नहीं जानते। इसके मुक़ाबले में हम उस की परस्तिश करते हैं जिसे जानते हैं, क्योंकि नजात यहूदियों में से है। [२३] लेकिन वह वक़्त आ रहा है बल्कि पहुँच चुका है जब हक़ीक़ी परस्तार रूह और सच्चाई से बाप की परस्तिश करेंगे, क्योंकि बाप ऐसे ही परस्तार चाहता है। [२४] अल्लाह रूह है, इसलिए लाज़िम है कि उसके परस्तार रूह और सच्चाई से उस की परस्तिश करें।”
[२५] औरत ने उससे कहा, “मुझे मालूम है कि मसीह यानी मसह किया हुआ शख़्स आ रहा है। जब वह आएगा तो हमें सब कुछ बता देगा।”
[२६] इस पर ईसा ने उसे बताया, “मैं ही मसीह हूँ जो तेरे साथ बात कर रहा हूँ।”