ईसा अलैहिस्सलाम और मफ़लूज

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

लूक़ा ५:१७-२६

[१७] एक दिन वह लोगों को तालीम दे रहा था। फ़रीसी और शरीअत के आलिम भी गलील और यहूदिया के हर गाँव और यरूशलम से आकर उसके पास बैठे थे। और रब की क़ुदरत उसे शफ़ा देने के लिए तहरीक दे रही थी। [१८] इतने में कुछ आदमी एक मफ़लूज को चारपाई पर डालकर वहाँ पहुँचे। उन्होंने उसे घर के अंदर ईसा के सामने रखने की कोशिश की, [१९] लेकिन बेफ़ायदा। घर में इतने लोग थे कि अंदर जाना नामुमकिन था। इसलिए वह आख़िरकार छत पर चढ़ गए और कुछ टायलें उधेड़कर छत का एक हिस्सा खोल दिया। फिर उन्होंने चारपाई को मफ़लूज समेत हुजूम के दरमियान ईसा के सामने उतारा। [२०] जब ईसा ने उनका ईमान देखा तो उसने मफ़लूज से कहा, “ऐ आदमी, तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं।” [२१] यह सुनकर शरीअत के आलिम और फ़रीसी सोच-बिचार में पड़ गए, “यह किस तरह का बंदा है जो इस क़िस्म का कुफ़र बकता है? सिर्फ़ अल्लाह ही गुनाह मुआफ़ कर सकता है।” [२२] लेकिन ईसा ने जान लिया कि यह क्या सोच रहे हैं, इसलिए उसने पूछा, “तुम दिल में इस तरह की बातें क्यों सोच रहे हो? [२३] क्या मफ़लूज से यह कहना ज़्यादा आसान है कि ‘तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं’ या यह कि ‘उठकर चल-फिर’? [२४] लेकिन मैं तुमको दिखाता हूँ कि इब्ने-आदम को वाक़ई दुनिया में गुनाह मुआफ़ करने का इख़्तियार है।” यह कहकर वह मफ़लूज से मुख़ातिब हुआ, “उठ, अपनी चारपाई उठाकर अपने घर चला जा।” [२५] लोगों के देखते देखते वह आदमी खड़ा हुआ और अपनी चारपाई उठाकर अल्लाह की हम्दो-सना करते हुए अपने घर चला गया। [२६] यह देखकर सब सख़्त हैरतज़दा हुए और अल्लाह की तमजीद करने लगे। उन पर ख़ौफ़ छा गया और वह कह उठे, “आज हमने नाक़ाबिले-यक़ीन बातें देखी हैं।”

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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