[१८:१] यह कहकर ईसा अपने शागिर्दों के साथ निकला और वादीए-क़िदरोन को पार करके एक बाग़ में दाख़िल हुआ। [२] यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करनेवाला था वह भी इस जगह से वाक़िफ़ था, क्योंकि ईसा वहाँ अपने शागिर्दों के साथ जाया करता था। [३] राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदाह को रोमी फ़ौजियों का दस्ता और बैतुल-मुक़द्दस के कुछ पहरेदार दिए थे। अब यह मशालें, लालटैन और हथियार लिए बाग़ में पहुँचे। [४] ईसा को मालूम था कि उसे क्या पेश आएगा। चुनाँचे उसने निकलकर उनसे पूछा, “तुम किस को ढूँड रहे हो?”
[५] उन्होंने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।”
ईसा ने उन्हें बताया, “मैं ही हूँ।”
यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करना चाहता था, वह भी उनके साथ खड़ा था। [६] जब ईसा ने एलान किया, “मैं ही हूँ,” तो सब पीछे हटकर ज़मीन पर गिर पड़े। [७] एक और बार ईसा ने उनसे सवाल किया, “तुम किस को ढूँड रहे हो?”
उन्होंने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।”
[८] उसने कहा, “मैं तुमको बता चुका हूँ कि मैं ही हूँ। अगर तुम मुझे ढूँड रहे हो तो इनको जाने दो।” [९] यों उस की यह बात पूरी हुई, “मैंने उनमें से जो तूने मुझे दिए हैं एक को भी नहीं खोया।”
[१०] शमौन पतरस के पास तलवार थी। अब उसने उसे मियान से निकालकर इमामे-आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया (ग़ुलाम का नाम मलख़ुस था)। [११] लेकिन ईसा ने पतरस से कहा, “तलवार को मियान में रख। क्या मैं वह प्याला न पियूँ जो बाप ने मुझे दिया है?”
[१२] फिर फ़ौजी दस्ते, उनके अफ़सर और बैतुल-मुक़द्दस के यहूदी पहरेदारों ने ईसा को गिरिफ़्तार करके बाँध लिया। [१३] पहले वह उसे हन्ना के पास ले गए। हन्ना उस साल के इमामे-आज़म कायफ़ा का सुसर था। [१४] कायफ़ा ही ने यहूदियों को यह मशवरा दिया था कि बेहतर यह है कि एक ही आदमी उम्मत के लिए मर जाए।
[१५] शमौन पतरस किसी और शागिर्द के साथ ईसा के पीछे हो लिया था। यह दूसरा शागिर्द इमामे-आज़म का जाननेवाला था, इसलिए वह ईसा के साथ इमामे-आज़म के सहन में दाख़िल हुआ। [१६] पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा। फिर इमामे-आज़म का जाननेवाला शागिर्द दुबारा निकल आया। उसने गेट की निगरानी करनेवाली औरत से बात की तो उसे पतरस को अपने साथ अंदर ले जाने की इजाज़त मिली। [१७] उस औरत ने पतरस से पूछा, “तुम भी इस आदमी के शागिर्द हो कि नहीं?”
उसने जवाब दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”
[१८] ठंड थी, इसलिए ग़ुलामों और पहरेदारों ने लकड़ी के कोयलों से आग जलाई। अब वह उसके पास खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ खड़ा ताप रहा था।
[१९] इतने में इमामे-आज़म ईसा की पूछ-गछ करके उसके शागिर्दों और तालीम के बारे में तफ़तीश करने लगा। [२०] ईसा ने जवाब में कहा, “मैंने दुनिया में खुलकर बात की है। मैं हमेशा यहूदी इबादतख़ानों और बैतुल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा, वहाँ जहाँ तमाम यहूदी जमा हुआ करते हैं। पोशीदगी में तो मैंने कुछ नहीं कहा। [२१] आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं? उनसे दरियाफ़्त करें जिन्होंने मेरी बातें सुनी हैं। उनको मालूम है कि मैंने क्या कुछ कहा है।”
[२२] इस पर साथ खड़े बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदारों में से एक ने ईसा के मुँह पर थप्पड़ मारकर कहा, “क्या यह इमामे-आज़म से बात करने का तरीक़ा है जब वह तुमसे कुछ पूछे?”
[२३] ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैंने बुरी बात की है तो साबित कर। लेकिन अगर सच कहा, तो तूने मुझे क्यों मारा?”
[२४] फिर हन्ना ने ईसा को बँधी हुई हालत में इमामे-आज़म कायफ़ा के पास भेज दिया।
[२५] शमौन पतरस अब तक आग के पास खड़ा ताप रहा था। इतने में दूसरे उससे पूछने लगे, “तुम भी उसके शागिर्द हो कि नहीं?”
लेकिन पतरस ने इनकार किया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”
[२६] फिर इमामे-आज़म का एक ग़ुलाम बोल उठा जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिसका कान पतरस ने उड़ा दिया था, “क्या मैंने तुमको बाग़ में उसके साथ नहीं देखा था?”
[२७] पतरस ने एक बार फिर इनकार किया, और इनकार करते ही मुरग़ की बाँग सुनाई दी।
[२८] फिर यहूदी ईसा को कायफ़ा से लेकर रोमी गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के पास पहुँच गए। अब सुबह हो चुकी थी और चूँकि यहूदी फ़सह की ईद के खाने में शरीक होना चाहते थे, इसलिए वह महल में दाख़िल न हुए, वरना वह नापाक हो जाते। [२९] चुनाँचे पीलातुस निकलकर उनके पास आया और पूछा, “तुम इस आदमी पर क्या इलज़ाम लगा रहे हो?”
[३०] उन्होंने जवाब दिया, “अगर यह मुजरिम न होता तो हम इसे आपके हवाले न करते।”
[३१] पीलातुस ने कहा, “फिर इसे ले जाओ और अपनी शरई अदालतों में पेश करो।”
लेकिन यहूदियों ने एतराज़ किया, “हमें किसी को सज़ाए-मौत देने की इजाज़त नहीं।” [३२] ईसा ने इस तरफ़ इशारा किया था कि वह किस तरह मरेगा और अब उस की यह बात पूरी हुई।
[३३] तब पीलातुस फिर अपने महल में गया। वहाँ से उसने ईसा को बुलाया और उससे पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?”
[३४] ईसा ने पूछा, “क्या आप अपनी तरफ़ से यह सवाल कर रहे हैं, या औरों ने आपको मेरे बारे में बताया है?”
[३५] पीलातुस ने जवाब दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारी अपनी क़ौम और राहनुमा इमामों ही ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुमसे क्या कुछ सरज़द हुआ है?”
[३६] ईसा ने कहा, “मेरी बादशाही इस दुनिया की नहीं है। अगर वह इस दुनिया की होती तो मेरे ख़ादिम सख़्त जिद्दो-जहद करते ताकि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। अब मेरी बादशाही यहाँ की नहीं है।”
[३७] पीलातुस ने कहा, “तो फिर तुम वाक़ई बादशाह हो?”
ईसा ने जवाब दिया, “आप सहीह कहते हैं, मैं बादशाह हूँ। मैं इसी मक़सद के लिए पैदा होकर दुनिया में आया कि सच्चाई की गवाही दूँ। जो भी सच्चाई की तरफ़ से है वह मेरी सुनता है।”
[३८] पीलातुस ने पूछा, “सच्चाई क्या है?”
फिर वह दुबारा निकलकर यहूदियों के पास गया। उसने एलान किया, “मुझे उसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली। [३९] लेकिन तुम्हारी एक रस्म है जिसके मुताबिक़ मुझे ईदे-फ़सह के मौक़े पर तुम्हारे लिए एक क़ैदी को रिहा करना है। क्या तुम चाहते हो कि मैं ‘यहूदियों के बादशाह’ को रिहा कर दूँ?”
[४०] लेकिन जवाब में लोग चिल्लाने लगे, “नहीं, इसको नहीं बल्कि बर-अब्बा को।” (बर-अब्बा डाकू था।)
[१९:१] फिर पीलातुस ने ईसा को कोड़े लगवाए। [२] फ़ौजियों ने काँटेदार टहनियों का एक ताज बनाकर उसके सर पर रख दिया। उन्होंने उसे अरग़वानी रंग का लिबास भी पहनाया। [३] फिर उसके सामने आकर वह कहते, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!” और उसे थप्पड़ मारते थे।
[४] एक बार फिर पीलातुस निकल आया और यहूदियों से बात करने लगा, “देखो, मैं इसे तुम्हारे पास बाहर ला रहा हूँ ताकि तुम जान लो कि मुझे इसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।” [५] फिर ईसा काँटेदार ताज और अरग़वानी रंग का लिबास पहने बाहर आया। पीलातुस ने उनसे कहा, “लो यह है वह आदमी।”
[६] उसे देखते ही राहनुमा इमाम और उनके मुलाज़िम चीख़ने लगे, “इसे मसलूब करें, इसे मसलूब करें!”
पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही इसे ले जाकर मसलूब करो। क्योंकि मुझे इसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।”
[७] यहूदियों ने इसरार किया, “हमारे पास शरीअत है और इस शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि वह मारा जाए। क्योंकि इसने अपने आपको अल्लाह का फ़रज़ंद क़रार दिया है।”
[८] यह सुनकर पीलातुस मज़ीद डर गया। [९] दुबारा महल में जाकर ईसा से पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?”
लेकिन ईसा ख़ामोश रहा। [१०] पीलातुस ने उससे कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ बात नहीं करते? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मुझे तुम्हें रिहा करने और मसलूब करने का इख़्तियार है?”
[११] ईसा ने जवाब दिया, “आपको मुझ पर इख़्तियार न होता अगर वह आपको ऊपर से न दिया गया होता। इस वजह से उस शख़्स से ज़्यादा संगीन गुनाह हुआ है जिसने मुझे दुश्मन के हवाले कर दिया है।”
[१२] इसके बाद पीलातुस ने उसे आज़ाद करने की कोशिश की। लेकिन यहूदी चीख़ चीख़कर कहने लगे, “अगर आप इसे रिहा करें तो आप रोमी शहनशाह क़ैसर के दोस्त साबित नहीं होंगे। जो भी बादशाह होने का दावा करे वह शहनशाह की मुख़ालफ़त करता है।”
[१३] इस तरह की बातें सुनकर पीलातुस ईसा को बाहर ले आया। फिर वह जज की कुरसी पर बैठ गया। उस जगह का नाम “पच्चीकारी” था। (अरामी ज़बान में वह गब्बता कहलाती थी।) [१४] अब दोपहर के तक़रीबन बारह बज गए थे। उस दिन ईद के लिए तैयारियाँ की जाती थीं, क्योंकि अगले दिन ईद का आग़ाज़ था। पीलातुस बोल उठा, “लो, तुम्हारा बादशाह!”
[१५] लेकिन वह चिल्लाते रहे, “ले जाएँ इसे, ले जाएँ! इसे मसलूब करें!”
पीलातुस ने सवाल किया, “क्या मैं तुम्हारे बादशाह को सलीब पर चढ़ाऊँ?”
राहनुमा इमामों ने जवाब दिया, “सिवाए शहनशाह के हमारा कोई बादशाह नहीं है।”
[१६] फिर पीलातुस ने ईसा को उनके हवाले कर दिया ताकि उसे मसलूब किया जाए।
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