सलीब, मुजरिम, दफ़न

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

लूक़ा २३:३२-५६

३२ दो और मर्दों को भी फाँसी देने के लिए बाहर ले जाया जा रहा था। दोनों मुजरिम थे। ३३ चलते चलते वह उस जगह पहुँचे जिसका नाम खोपड़ी था। वहाँ उन्होंने ईसा को दोनों मुजरिमों समेत मसलूब किया। एक मुजरिम को उसके दाएँ हाथ और दूसरे को उसके बाएँ हाथ लटका दिया गया। ३४ ईसा ने कहा, “ऐ बाप, इन्हें मुआफ़ कर, क्योंकि यह जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।” उन्होंने क़ुरा डालकर उसके कपड़े आपस में बाँट लिए। ३५ हुजूम वहाँ खड़ा तमाशा देखता रहा जबकि क़ौम के सरदारों ने उसका मज़ाक़ भी उड़ाया। उन्होंने कहा, “उसने औरों को बचाया है। अगर यह अल्लाह का चुना हुआ और मसीह है तो अपने आपको बचाए।” ३६ फ़ौजियों ने भी उसे लान-तान की। उसके पास आकर उन्होंने उसे मै का सिरका पेश किया ३७ और कहा, “अगर तू यहूदियों का बादशाह है तो अपने आपको बचा ले।” ३८ उसके सर के ऊपर एक तख़्ती लगाई गई थी जिस पर लिखा था, “यह यहूदियों का बादशाह है।” ३९ जो मुजरिम उसके साथ मसलूब हुए थे उनमें से एक ने कुफ़र बकते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं है? तो फिर अपने आपको और हमें भी बचा ले।” ४० लेकिन दूसरे ने यह सुनकर उसे डाँटा, “क्या तू अल्लाह से भी नहीं डरता? जो सज़ा उसे दी गई है वह तुझे भी मिली है। ४१ हमारी सज़ा तो वाजिबी है, क्योंकि हमें अपने कामों का बदला मिल रहा है, लेकिन इसने कोई बुरा काम नहीं किया।” ४२ फिर उसने ईसा से कहा, “जब आप अपनी बादशाही में आएँ तो मुझे याद करें।” ४३ ईसा ने उससे कहा, “मैं तुझे सच बताता हूँ कि तू आज ही मेरे साथ फ़िर्दौस में होगा।” ४४ बारह बजे से दोपहर तीन बजे तक पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। ४५ सूरज तारीक हो गया और बैतुल-मुक़द्दस के मुक़द्दसतरीन कमरे के सामने लटका हुआ परदा दो हिस्सों में फट गया। ४६ ईसा ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “ऐ बाप, मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” यह कहकर उसने दम छोड़ दिया। ४७ यह देखकर वहाँ खड़े फ़ौजी अफ़सर ने अल्लाह की तमजीद करके कहा, “यह आदमी वाक़ई रास्तबाज़ था।” ४८ और हुजूम के तमाम लोग जो यह तमाशा देखने के लिए जमा हुए थे यह सब कुछ देखकर छाती पीटने लगे और शहर में वापस चले गए। ४९ लेकिन ईसा के जाननेवाले कुछ फ़ासले पर खड़े देखते रहे। उनमें वह ख़वातीन भी शामिल थीं जो गलील में उसके पीछे चलकर यहाँ तक उसके साथ आई थीं। ५० वहाँ एक नेक और रास्तबाज़ आदमी बनाम यूसुफ़ था। वह यहूदी अदालते-आलिया का रुकन था ५१ लेकिन दूसरों के फ़ैसले और हरकतों पर रज़ामंद नहीं हुआ था। यह आदमी यहूदिया के शहर अरिमतियाह का रहनेवाला था और इस इंतज़ार में था कि अल्लाह की बादशाही आए। ५२ अब उसने पीलातुस के पास जाकर उससे ईसा की लाश ले जाने की इजाज़त माँगी। ५३ फिर लाश को उतारकर उसने उसे कतान के कफ़न में लपेटकर चटान में तराशी हुई एक क़ब्र में रख दिया जिसमें अब तक किसी को दफ़नाया नहीं गया था। ५४ यह तैयारी का दिन यानी जुमा था, लेकिन सबत का दिन शुरू होने को था। ५५ जो औरतें ईसा के साथ गलील से आई थीं वह यूसुफ़ के पीछे हो लीं। उन्होंने क़ब्र को देखा और यह भी कि ईसा की लाश किस तरह उसमें रखी गई है। ५६ फिर वह शहर में वापस चली गईं और उस की लाश के लिए ख़ुशबूदार मसाले तैयार करने लगीं। लेकिन बीच में सबत का दिन शुरू हुआ, इसलिए उन्होंने शरीअत के मुताबिक़ आराम किया।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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