ईसा अलैहिस्सलाम अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

लूक़ा २४:३६-५३

[३६] वह अभी यह बातें सुना रहे थे कि ईसा ख़ुद उनके दरमियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो।” [३७] वह घबराकर बहुत डर गए, क्योंकि उनका ख़याल था कि कोई भूत-प्रेत देख रहे हैं। [३८] उसने उनसे कहा, “तुम क्यों परेशान हो गए हो? क्या वजह है कि तुम्हारे दिलों में शक उभर आया है? [३९] मेरे हाथों और पाँवों को देखो कि मैं ही हूँ। मुझे टटोलकर देखो, क्योंकि भूत के गोश्त और हड्डियाँ नहीं होतीं जबकि तुम देख रहे हो कि मेरा जिस्म है।” [४०] यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ और पाँव दिखाए। [४१] जब उन्हें ख़ुशी के मारे यक़ीन नहीं आ रहा था और ताज्जुब कर रहे थे तो ईसा ने पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कोई खाने की चीज़ है?” [४२] उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया। [४३] उसने उसे लेकर उनके सामने ही खा लिया। [४४] फिर उसने उनसे कहा, “यही है जो मैंने तुमको उस वक़्त बताया था जब तुम्हारे साथ था कि जो कुछ भी मूसा की शरीअत, नबियों के सहीफ़ों और ज़बूर की किताब में मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा होना है।” [४५] फिर उसने उनके ज़हन को खोल दिया ताकि वह अल्लाह का कलाम समझ सकें। [४६] उसने उनसे कहा, “कलामे-मुक़द्दस में यों लिखा है, मसीह दुख उठाकर तीसरे दिन मुरदों में से जी उठेगा। [४७] फिर यरूशलम से शुरू करके उसके नाम में यह पैग़ाम तमाम क़ौमों को सुनाया जाएगा कि वह तौबा करके गुनाहों की मुआफ़ी पाएँ। [४८] तुम इन बातों के गवाह हो। [४९] और मैं तुम्हारे पास उसे भेज दूँगा जिसका वादा मेरे बाप ने किया है। फिर तुमको आसमान की क़ुव्वत से मुलब्बस किया जाएगा। उस वक़्त तक शहर से बाहर न निकलना।” [५०] फिर वह शहर से निकलकर उन्हें बैत-अनियाह तक ले गया। वहाँ उसने अपने हाथ उठाकर उन्हें बरकत दी। [५१] और ऐसा हुआ कि बरकत देते हुए वह उनसे जुदा होकर आसमान पर उठा लिया गया। [५२] उन्होंने उसे सिजदा किया और फिर बड़ी ख़ुशी से यरूशलम वापस चले गए। [५३] वहाँ वह अपना पूरा वक़्त बैतुल-मुक़द्दस में गुज़ारकर अल्लाह की तमजीद करते रहे।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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