२५ जब बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी, तो उसने पीछे मुड़कर उनसे कहा, २६ “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहिनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता; २७ और जो कोई अपना क्रूस न उठाए, और मेरे पीछे न आए, वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता।
२८ “तुम में से कौन है जो गढ़ बनाना चाहता हो, और पहले बैठकर खर्च न जोड़े कि पूरा करने की सामर्थ्य मेरे पास है कि नहीं? २९ कहीं ऐसा न हो कि जब वह नींव डाल ले पर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसे ठट्ठों में उड़ाने लगें, ३० ‘यह मनुष्य बनाने तो लगा पर तैयार न कर सका?’ ३१ या कौन ऐसा राजा है जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हज़ार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हज़ार लेकर उसका सामना कर सकता हूँ, या नहीं? ३२ नहीं तो उसके दूर रहते ही वह दूतों को भेजकर मिलाप करना चाहेगा। ३३ इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता।
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