पर्वत पर उपदेश, भाग ५

संगती

परमेश्वर को खोजने के नए सत्र में आपका स्वागत है। हमारा जीवन कैसा चल रहा है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । बीते सप्ताह में आपके या आपके समुदाय में परमेश्वर ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, बीते सप्ताह में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर वार्तालाभ करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने जीवन में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ साझा की, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, परमेश्वर की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती ६:१९-३४

१९ “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो, जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध लगाते और चुराते हैं। २० परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहाँ न तो कीड़ा और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं। २१ क्योंकि जहाँ तेरा धन है वहाँ तेरा मन भी लगा रहेगा। २२ “शरीर का दीया आँख है : इसलिये यदि तेरी आँख निर्मल हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा। २३ परन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अन्धियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अन्धकार हो तो वह अन्धकार कैसा बड़ा होगा! २४ “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा। तुम परमेश्‍वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते। २५ इसलिये मैं तुम से कहता हूँ कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे और क्या पीएँगे; और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे। क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं? २६ आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते? २७ तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी आयु में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है? २८ “और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो? जंगली सोसनों पर ध्यान करो कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न तो परिश्रम करते, न कातते हैं। २९ तौभी मैं तुम से कहता हूँ कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में उनमें से किसी के समान वस्त्र पहिने हुए न था। ३० इसलिये जब परमेश्‍वर मैदान की घास को, जो आज है और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहिनाता है, तो हे अल्पविश्‍वासियो, तुम को वह इनसे बढ़कर क्यों न पहिनाएगा? ३१ “इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहिनेंगे। ३२ क्योंकि अन्यजातीय इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, पर तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है। ३३ इसलिये पहले तुम परमेश्‍वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी। ३४ अत: कल की चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दु:ख बहुत है।

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लागूकरण

अब कहानी को फिर से सुनते हैं।
परमेश्वर के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
इस कहानी से आप अपने सहित लोगों के बारे में क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने जीवन में कैसे लागु करेंगे? क्या ऐसी कोई आज्ञा है, जो पालन करना है? अनुसरण करने हेतु कोई उदहारण है? या फिर कोई पाप जिससे अपने आपको दूर करने की जरुरत है?
सत्य का संचय नहीं करना चाहिए, किसी ने आप के साथ सत्य साझा किया, जिससे आप को लाभ प्राप्त हुआ है, तो, आप आने वाले सप्ताह में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को साझा करेंगे?
जैसे ही हमारी सत्र समाप्त होने को है, आइए तय करें कि अगली कहानी सुनने के लिए हम दोबारा कब मिलेंगे और चुनें कि हमारी अगली सत्र की सुविधा कौन प्रदान करेगा?
यह संगति का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, उस बात को लिखने के लिए जो आप करने वाले है और अगले सत्र में आने पूर्व, कहानी को फिर से पढ़ लें।

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