१४ जब वे भीड़ के पास पहुँचे, तो एक मनुष्य उसके पास आया, और घुटने टेक कर कहने लगा, १५ “हे प्रभु, मेरे पुत्र पर दया कर! क्योंकि उसको मिर्गी आती है, और वह बहुत दु:ख उठाता है; और बार–बार आग में और बार–बार पानी में गिर पड़ता है। १६ मैं उसको तेरे चेलों के पास लाया था, पर वे उसे अच्छा नहीं कर सके।” १७ यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगो, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” १८ तब यीशु ने दुष्टात्मा को डाँटा, और वह उसमें से निकल गई; और लड़का उसी घड़ी अच्छा हो गया।
१९ तब चेलों ने एकान्त में यीशु के पास आकर कहा, “हम उसे क्यों नहीं निकाल सके?” २० उसने उनसे कहा, “अपने विश्वास की घटी के कारण, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, ‘यहाँ से सरककर वहाँ चला जा’, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये असम्भव न होगी। २१ [पर यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।]”
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