परमेश्वर के राज्य में सबसे महान

संगती

परमेश्वर को खोजने के नए सत्र में आपका स्वागत है। हमारा जीवन कैसा चल रहा है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । बीते सप्ताह में आपके या आपके समुदाय में परमेश्वर ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, बीते सप्ताह में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर वार्तालाभ करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने जीवन में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ साझा की, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, परमेश्वर की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती १८:१-१४

१ उस घड़ी चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है?” २ इस पर उसने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया, ३ और कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे। ४ जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। ५ और जो कोई मेरे नाम से एक ऐसे बालक को ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है। ६ “पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्‍वास करते हैं एक को ठोकर खिलाए, उसके लिये भला होता कि बड़ी चक्‍की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह गहरे समुद्र में डुबाया जाता। ७ ठोकरों के कारण संसार पर हाय! ठोकरों का लगना अवश्य है; पर हाय उस मनुष्य पर जिसके द्वारा ठोकर लगती है। ८ “यदि तेरा हाथ या तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे काटकर फेंक दे; टुण्डा या लंगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है कि दो हाथ या दो पाँव रहते हुए तू अनन्त आग में डाला जाए। ९ यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे; काना होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है कि दो आँख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए। १० “देखो, तुम इन छोटों में से किसी को तुच्छ न जानना; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ कि स्वर्ग में उनके दूत मेरे स्वर्गीय पिता का मुँह सदा देखते हैं। ११ [क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को बचाने आया है।] १२ “तुम क्या सोचते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक भटक जाए, तो क्या वह निन्यानबे को छोड़कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढूँढ़ेगा? १३ और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह उन निन्यानबे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थीं, इतना आनन्द नहीं करेगा जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा। १४ ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं कि इन छोटों में से एक भी नष्‍ट हो।

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लागूकरण

अब कहानी को फिर से सुनते हैं।
परमेश्वर के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
इस कहानी से आप अपने सहित लोगों के बारे में क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने जीवन में कैसे लागु करेंगे? क्या ऐसी कोई आज्ञा है, जो पालन करना है? अनुसरण करने हेतु कोई उदहारण है? या फिर कोई पाप जिससे अपने आपको दूर करने की जरुरत है?
सत्य का संचय नहीं करना चाहिए, किसी ने आप के साथ सत्य साझा किया, जिससे आप को लाभ प्राप्त हुआ है, तो, आप आने वाले सप्ताह में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को साझा करेंगे?
जैसे ही हमारी सत्र समाप्त होने को है, आइए तय करें कि अगली कहानी सुनने के लिए हम दोबारा कब मिलेंगे और चुनें कि हमारी अगली सत्र की सुविधा कौन प्रदान करेगा?
यह संगति का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, उस बात को लिखने के लिए जो आप करने वाले है और अगले सत्र में आने पूर्व, कहानी को फिर से पढ़ लें।

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