[७] बेख़मीरी रोटी की ईद आई जब फ़सह के लेले को क़ुरबान करना था। [८] ईसा ने पतरस और यूहन्ना को आगे भेजकर हिदायत की, “जाओ, हमारे लिए फ़सह का खाना तैयार करो ताकि हम जाकर उसे खा सकें।”
[९] उन्होंने पूछा, “हम उसे कहाँ तैयार करें?”
[१०] उसने जवाब दिया, “जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा। उसके पीछे चलकर उस घर में दाख़िल हो जाओ जिसमें वह जाएगा। [११] वहाँ के मालिक से कहना, ‘उस्ताद आपसे पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ?’ [१२] वह तुमको दूसरी मनज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा। फ़सह का खाना वहीं तैयार करना।”
[१३] दोनों चले गए तो सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा ने उन्हें बताया था। फिर उन्होंने फ़सह का खाना तैयार किया।
[१४] मुक़र्ररा वक़्त पर ईसा अपने शागिर्दों के साथ खाने के लिए बैठ गया। [१५] उसने उनसे कहा, “मेरी शदीद आरज़ू थी कि दुख उठाने से पहले तुम्हारे साथ मिलकर फ़सह का यह खाना खाऊँ। [१६] क्योंकि मैं तुमको बताता हूँ कि उस वक़्त तक इस खाने में शरीक नहीं हूँगा जब तक इसका मक़सद अल्लाह की बादशाही में पूरा न हो गया हो।”
[१७] फिर उसने मै का प्याला लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और कहा, “इसको लेकर आपस में बाँट लो। [१८] मैं तुमको बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा, क्योंकि अगली दफ़ा इसे अल्लाह की बादशाही के आने पर पियूँगा।”
[१९] फिर उसने रोटी लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे टुकड़े करके उन्हें दे दिया। उसने कहा, “यह मेरा बदन है, जो तुम्हारे लिए दिया जाता है। मुझे याद करने के लिए यही किया करो।” [२०] इसी तरह उसने खाने के बाद प्याला लेकर कहा, “मै का यह प्याला वह नया अहद है जो मेरे ख़ून के ज़रीए क़ायम किया जाता है, वह ख़ून जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है।
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