दुआ

संगती

इब्राहीम की औलाद के नए मुलाक़ात में आपका ख़ैर-मक़्दम है, हमारी ज़िंदगी कैसी चल रही है, इसे जानते हुए शुरुआत करेंगे । पिछले हफ़्ते में आपके या आपके बिरादरी में खुदा ने ऐसा कोई काम किया है, जिसके लिए, आप खुदा को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं?
अगली कहानी की शुरुआत करने से पहले, पिछले हफ़्ते में जिस कहानी से हम सीखे हैं, इस पर चर्चा करें।
किस प्रकार से आप ने इस कहानी को अपने ज़िंदगी में लागु किया?
यह कहानी आप ने किसके साथ बाँटा, एवं उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अब, खुदा की ओर से नई कहानी को सुनते हैं।

मत्ती ६:५-१५

[५] दुआ करते वक़्त रियाकारों की तरह न करना जो इबादतख़ानों और चौकों में जाकर दुआ करना पसंद करते हैं, जहाँ सब उन्हें देख सकें। मैं तुमको सच बताता हूँ, जितना अज्र उन्हें मिलना था उन्हें मिल चुका है। [६] इसके बजाए जब तू दुआ करता है तो अंदर के कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर और फिर अपने बाप से दुआ कर जो पोशीदगी में है। फिर तेरा बाप जो पोशीदा बातें देखता है तुझे इसका मुआवज़ा देगा। [७] दुआ करते वक़्त ग़ैरयहूदियों की तरह तवील और बेमानी बातें न दोहराते रहो। वह समझते हैं कि हमारी बहुत-सी बातों के सबब से हमारी सुनी जाएगी। [८] उनकी मानिंद न बनो, क्योंकि तुम्हारा बाप पहले से तुम्हारी ज़रूरियात से वाक़िफ़ है, [९] बल्कि यों दुआ किया करो, ऐ हमारे आसमानी बाप, तेरा नाम मुक़द्दस माना जाए। [१०] तेरी बादशाही आए। तेरी मरज़ी जिस तरह आसमान में पूरी होती है ज़मीन पर भी पूरी हो। [११] हमारी रोज़ की रोटी आज हमें दे। [१२] हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर जिस तरह हमने उन्हें मुआफ़ किया जिन्होंने हमारा गुनाह किया है। [१३] और हमें आज़माइश में न पड़ने दे बल्कि हमें इबलीस से बचाए रख। [क्योंकि बादशाही, क़ुदरत और जलाल अबद तक तेरे ही हैं।] [१४] क्योंकि जब तुम लोगों के गुनाह मुआफ़ करोगे तो तुम्हारा आसमानी बाप भी तुमको मुआफ़ करेगा। [१५] लेकिन अगर तुम उन्हें मुआफ़ न करो तो तुम्हारा बाप भी तुम्हारे गुनाह मुआफ़ नहीं करेगा।

लूक़ा १८:१-८

[१] फिर ईसा ने उन्हें एक तमसील सुनाई जो मुसलसल दुआ करने और हिम्मत न हारने की ज़रूरत को ज़ाहिर करती है। [२] उसने कहा, “किसी शहर में एक जज रहता था जो न ख़ुदा का ख़ौफ़ मानता, न किसी इनसान का लिहाज़ करता था। [३] अब उस शहर में एक बेवा भी थी जो यह कहकर उसके पास आती रही कि ‘मेरे मुख़ालिफ़ को जीतने न दें बल्कि मेरा इनसाफ़ करें।’ [४] कुछ देर के लिए जज ने इनकार किया। लेकिन फिर वह दिल में कहने लगा, ‘बेशक मैं ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं मानता, न लोगों की परवा करता हूँ, [५] लेकिन यह बेवा मुझे बार बार तंग कर रही है। इसलिए मैं उसका इनसाफ़ करूँगा। ऐसा न हो कि आख़िरकार वह आकर मेरे मुँह पर थप्पड़ मारे’।” [६] ख़ुदावंद ने बात जारी रखी। “इस पर ध्यान दो जो बेइनसाफ़ जज ने कहा। [७] अगर उसने आख़िरकार इनसाफ़ किया तो क्या अल्लाह अपने चुने हुए लोगों का इनसाफ़ नहीं करेगा जो दिन-रात उसे मदद के लिए पुकारते हैं? क्या वह उनकी बात मुलतवी करता रहेगा? [८] हरगिज़ नहीं! मैं तुमको बताता हूँ कि वह जल्दी से उनका इनसाफ़ करेगा। लेकिन क्या इब्ने-आदम जब दुनिया में आएगा तो ईमान देख पाएगा?”

फ़िलिप्पियों ४:६-७

[६] अपनी किसी भी फ़िकर में उलझकर परेशान न हो जाएँ बल्कि हर हालत में दुआ और इल्तिजा करके अपनी दरख़ास्तें अल्लाह के सामने पेश करें। ध्यान रखें कि आप यह शुक्रगुज़ारी की रूह में करें। [७] फिर अल्लाह की सलामती जो समझ से बाहर है आपके दिलों और ख़यालात को मसीह ईसा में महफ़ूज़ रखेगी।

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लागूकरण

अब कहानी को फ़िर से सुनते हैं।
खुदा के बारे में आप इस कहानी से क्या सिखते हैं?
लोगों के बारे में आप इस कहानी से क्या सीखते हैं?
यह कहानी आप अपने ज़िंदगी में कैसे लागु करेंगे? क्या इस कहानी में कोई हुक्म है जिसे हमें मानना चाहिए या इसमें कोई मिसाल है जिसकी हम पैरवी करें या फ़िर इस कहानी के मुताबिक कोई गुनाह है जिससे हमें बचना चाहिए?
सच्चाई को जमा करने की ज़रूरत नहीं है । किसी ने आपके साथ सच्चाई को बाँटा है, जिसकी वजह से आपकी ज़िंदगी में कुछ फ़ायदा पहुँचा है। इसलिये आप आने वाले हफ़्ते में, किस व्यक्ति के साथ इस कहानी को बाँटेंगे?
जैसे हम इस मुलाक़ात के आख़िरी पड़ाव में है, आइए तय करते हैं की हम अगले हफ़्ते में कब मिलेंगे, और अगले मुलाक़ात की सहूलत कौन करेगा?
यह मुलाक़ात का समय अच्छा रहा, हम आपको प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो आप ने सीखा है उस पर लिखकर ध्यान दें, और अगले मुलाक़ात में आने से पहले, कहानी को फ़िर से पढ़ लें।

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