[५] दुआ करते वक़्त रियाकारों की तरह न करना जो इबादतख़ानों और चौकों में जाकर दुआ करना पसंद करते हैं, जहाँ सब उन्हें देख सकें। मैं तुमको सच बताता हूँ, जितना अज्र उन्हें मिलना था उन्हें मिल चुका है। [६] इसके बजाए जब तू दुआ करता है तो अंदर के कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर और फिर अपने बाप से दुआ कर जो पोशीदगी में है। फिर तेरा बाप जो पोशीदा बातें देखता है तुझे इसका मुआवज़ा देगा।
[७] दुआ करते वक़्त ग़ैरयहूदियों की तरह तवील और बेमानी बातें न दोहराते रहो। वह समझते हैं कि हमारी बहुत-सी बातों के सबब से हमारी सुनी जाएगी। [८] उनकी मानिंद न बनो, क्योंकि तुम्हारा बाप पहले से तुम्हारी ज़रूरियात से वाक़िफ़ है, [९] बल्कि यों दुआ किया करो,
ऐ हमारे आसमानी बाप,
तेरा नाम मुक़द्दस माना जाए।
[१०] तेरी बादशाही आए।
तेरी मरज़ी जिस तरह आसमान में पूरी होती है ज़मीन पर भी पूरी हो।
[११] हमारी रोज़ की रोटी आज हमें दे।
[१२] हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर
जिस तरह हमने उन्हें मुआफ़ किया
जिन्होंने हमारा गुनाह किया है।
[१३] और हमें आज़माइश में न पड़ने दे
बल्कि हमें इबलीस से बचाए रख।
[क्योंकि बादशाही, क़ुदरत और जलाल अबद तक तेरे ही हैं।]
[१४] क्योंकि जब तुम लोगों के गुनाह मुआफ़ करोगे तो तुम्हारा आसमानी बाप भी तुमको मुआफ़ करेगा। [१५] लेकिन अगर तुम उन्हें मुआफ़ न करो तो तुम्हारा बाप भी तुम्हारे गुनाह मुआफ़ नहीं करेगा।