१८ भोर को जब वह नगर को लौट रहा था तो उसे भूख लगी। १९ सड़क के किनारे अंजीर का एक पेड़ देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उसमें और कुछ न पाकर उससे कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगें।” और अंजीर का पेड़ तुरन्त सूख गया। २० यह देखकर चेलों को अचम्भा हुआ और उन्होंने कहा, “यह अंजीर का पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया?” २१ यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम विश्वास रखो और संदेह न करो, तो न केवल यह करोगे जो इस अंजीर के पेड़ से किया गया है, परन्तु यदि इस पहाड़ से भी कहोगे, ‘उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़’, तो यह हो जाएगा। २२ और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से माँगोगे वह सब तुम को मिलेगा।”
२३ वह मन्दिर में जाकर उपदेश कर रहा था, तो प्रधान याजकों और लोगों के पुरनियों ने उसके पास आकर पूछा, “तू ये काम किसके अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किसने दिया है?” २४ यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। २५ यूहन्ना का बपतिस्मा कहाँ से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से?” तब वे आपस में विवाद करने लगे, “यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेगा, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों न किया?’ २६ और यदि कहें ‘मनुष्यों की ओर से’, तो हमें भीड़ का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्ना को भविष्यद्वक्ता मानते हैं।” २७ अत: उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” उसने भी उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।
Copyright © Bible Society of India, 2015. Used with permission. All rights reserved worldwide.