१४ “क्योंकि यह उस मनुष्य की सी दशा है जिसने परदेश जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी संपत्ति उनको सौंप दी। १५ उसने एक को पाँच तोड़े, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। १६ तब, जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन–देन किया, और पाँच तोड़े और कमाए। १७ इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। १८ परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी के रुपये छिपा दिए।
१९ “बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। २० जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी,तू ने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे, देख, मैं ने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ २१ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
२२ “और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा, ‘हे स्वामी, तू ने मुझे दो तोड़े सौंपे थे, देख, मैं ने दो तोड़े और कमाए।’ २३ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
२४ “तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, ‘हे स्वामी, मैं तुझे जानता था कि तू कठोर मनुष्य है : तू जहाँ कहीं नहीं बोता वहाँ काटता है, और जहाँ नहीं छींटता वहाँ से बटोरता है। २५ इसलिये मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया। देख, जो तेरा है, वह यह है।’ २६ उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘हे दुष्ट और आलसी दास, जब तू यह जानता था कि जहाँ मैं ने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ, और जहाँ मैं ने नहीं छींटा वहाँ से बटोरता हूँ; २७ तो तुझे चाहिए था कि मेरा रुपया सर्राफों को दे देता, तब मैं आकर अपना धन ब्याज समेत ले लेता। २८ इसलिये वह तोड़ा उससे ले लो, और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसको दे दो। २९ क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा : परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा। ३० और इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।’
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